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आपके सारे काम जैन समाज में एक नवीन ज्योति के प्रतीक हैं। आपने समाज को सोते से जगाया, विधर्मियों के हमलों से बचाया। संघ को बलिष्ट बनाया। इसके फल स्वरूप आप पर संघ की दिनो दिन भक्ति बढ़ती गई।
बीजापुर से आप सेवाड़ी और लुनावा होते हुए सेसली नामक तीर्थ स्थान में पधारे। यहाँ पर आप की सेवा में सादड़ी का संघ सादडी पधारने की विनती करने के लिए आया। आप उनकी प्रार्थना स्वीकार इसलिए नहीं करते थे कि जब से आपने गुजरात से विहार करके मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया था, तभी से बीकानेर के धर्मात्मा सेठ सुमेरमलजी सुराणा आपकी सेवा में अनेक स्थानों पर आ चुके थे। उनकी इच्छा थी कि उनके पूज्य पिताजी जिनकी अवस्था अब बहुत होगई है और जिनके शरीर का भरोसा नहीं, यदि गुरुदेव के श्रीमुख से वे भगवतीजी को सुन लें तो अहो भाग्य हो ! सेठजो की धर्म श्रद्धा देख कर आपने बीकानेर जाने का संकल्प प्रदर्शित किया। आखिर सादड़ी वालों की विशेष प्रार्थना देख कर तथा मुनि श्री ललितविजयजी की विनंती स्वीकार कर आप एक रात्रि के लिए सादड़ो पधारे। . . आपने संघ को शिक्षा प्रचार का उपदेश दिया। लोगों के दिलों में इतना जोश था कि वे सहसा बोल
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