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गुरु महा.-"तुम किसी बात की चिन्ता न करों। हम सब तुम्हारे हो हैं।"
सिपाही को आश्वासन मिला। आपके प्रति उसने हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की। . सर्दी का मौसम था। पहाड़ की हवा तीर की माँति चल रही थी। साधुओं के पास केवल चोल पट्टा था। लुटेरों ने लज्जा ढकी रहने देने के लिए ही उसे न लिया था।
आप लोग वहां से बीजापुर की ओर चले, सिपाही बेचारा भी किसी प्रकार धीरे२ साथ ही आ रहा था। जब आप गांव के निकट पहुँचे तो आप और अन्य मुनिराजों को केवल चोल पट्टा पहने आते हुए आप के पूर्व परिचित एक सद् गृहस्थ ने देखा। पहले तो उन्हें अपनी
आँखों पर विश्वास ही न हुआ, किन्तु जब आप निकट पहुँचे। वे भौंचक्के रह गये ।
"अहो गुरुदेव ! आप की यह दशा ?" गद् गद कंठ से यह कहते हुए पैरों पर गिर पड़े। आप अब तक शांत थे। मुस्करा कर कहा-“कर्म सब कुछ कर सकता है। उपाश्रय बतलाओ! वहीं चल कर सारी कथा सुनावेंगे।" * आवश्यक्तानुसार सब ने वस्त्र लिया। साधु आहार पानी ले आये। आपने सारी घटना कह सुनाई। आप
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