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कान्तिविजयजी महाराज, शान्त मूर्त्ति श्री हँसविजयजी महाराज तथा आगमोद्धारक आचार्य श्री आनन्दसागरजी महाराज आदि ३६ साधुओं ने आपका अपूर्व स्वागत करवाया। सब के सब मुनिराज सहर्ष आपके सामने आये । आपने भी विनीत और सौहार्द भाव से उनका स्वागत किया ।
आपने अपना कुछ समय उस प्रान्त में बिताया । चारों ओर घूम घूम कर शिक्षा का नवीन सन्देश सुनाते रहे । आपके परम भक्त शिष्य श्री ललितविजयजी महाराज तथा मुनिराज श्री सोहनविजयजी महाराज भी आपके साथ थे ।
दोनों गुरु शिष्यों का अन्य साधुओं के साथ कठिन विहार - परिश्रम फल लाया और गुजराती जनता ने शिक्षण संस्थाओं की आवश्यक्ता समझी। आज कल बगवाड़ा, बोरड़ी आदि स्थानों में जो संस्थाएँ चल रही हैं, वे उसी परिश्रम के फल हैं।
अगला चौमासा आपने मीयांगाँव में किया। चौमासा उठने के बाद आप इधर आस पास ही घूमते रहे। नर्मदा के किनारे कोरल गांव में आप का पधारना हुआ। यहां
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बड़े समारोह के साथ अठाई महोत्सव मनाया गया । तत्कालीन एक विशेष घटना उल्लेखनीय है ।
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