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________________ ( ३१ ) पालने की ओर ही था । अतः आपने सहर्ष सारी तकलीफें सहन कीं । आप नये नये क्षेत्रों में फिर कर धर्म प्रभावना और गुरुदेव के नाम की ख्याति फैलाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते थे । एक ही स्थान पर सुख पूर्वक रह कर बैठे रहना आपको बिलकुल पसन्द नहीं था | आपके सिर पर स्वर्गस्थ गुरुदेव का अदृश्य प्रभाव था इसलिए जहाँ कहीं भी आप पधारते आपकी अपूर्व प्रतिष्ठा और धर्म की भावना होती । सं० १६५३ की घटना है। पूज्यपाद श्री आत्मारामजी महाराज के स्वर्गवास को अभी ६-७ महीने ही हो पाये थे। गुजरांवाला का चौमासा समाप्त करके आप रामनगर पधारे। आपका विचार रावलपिंडी और पिंडदादनखां जाने का था। रामनगर में आप के व्याख्यानों का जनता पर अपूर्व प्रभाव पड़ा। एक दिन आप विहार करने को तैयार हुए। गाँव के सब लोग एकत्रित हुए । उनमें लक्षाधिपति रामशाह नामक वैष्णव क्षत्रिय और एक 1. तार बाबू मुख्य थे। उन्होंने आकर आप श्रीजी के चरण पकड़े और कहा 'हमारा आत्मा आपके बिहार से दुःख पाता है । हम आपको हरगिज नहीं जाने देंगे।' तार बाबू ऑफिस में डाक का थैला आकर पड़ा था । कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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