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( १५६) से खराब चली आरही थी। आप गुरु महाराज की भकि में स्वरचित एक नवीन कविता पढ़ कर अपने मनोगत भक्ति भावों को व्यक्त करना चाहते थे। यद्यपि आपकी शारीरिक अवस्था ऐसी न थी कि आप ऊँचे बोल सके तथापि आपने हठ करके कविता पढ़ना शुरु किया। अभी समाप्त न कर पाये थे कि अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। सभा में खलबली मच गई। उपचार किया गया परन्तु आपके प्राण पखेरू इस नाशवान शरीर से प्रयाण कर गये थे। यद्यपि ऐसा सुन्दर मरण-गुरु महाराज की उपस्थिति में, मुख से गुरु गुण गान करते हुये शुभ ध्यान में—किसी२ पुण्यवान को ही प्राप्त होता है तथापि सांसा'रिक दृष्टि से सर्वत्र शोक सा छा गया। हमें जैन कवि
की इस छोटी अवस्था में ही उनका शरीरान्त होजाने पर भारी खेद है। प्रार्थना है कि उनकी स्वर्गस्थ आत्मा को शान्ति प्राप्त हो। - देहली से विहार कर करनाल शाहबाद होकर अंबाला शहर पधारे। गर्मी के दिनों में इतना लंबा और कठिन विहार कर आप श्री आत्मानंद जैन कॉलेज के उद्घाटन के मुहर्त से दो दिन पहले यहाँ पहुँच ही गये । जैनाचार्य श्री विजय विद्या मूरिजी, श्री विचारविजयजी, उपेन्द्र विजयजी तथा साध्वीजी श्री चित्तश्रीजी आदि गुजरांवाला से
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