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(१४०) श्रावण सुदि१ ता० ७ अगस्त को प्रतिष्ठा का जुलूस निकलने वाला था परन्तु शहर के एक प्रतिष्ठित अधिकारी के स्वर्गवास के कारण शहर में हड़ताल हो गई। अतः अगले दिन जुलूस निकला। श्री विजय लावण्यमूरिजी आदि भी जुलूस में साथ ही थे। इससे श्रीसंघ के उत्साह में अच्छी वृद्धि हुई। ऐसी रौनक ५० वर्षों में भी पहले किसी ने न देखी थी। मांडवी की पोल में श्रावण मुदि ३ ता. 8 अगस्त को प्रभु विराजमान किये गये। दोपहर को अष्टोत्तरी स्नात्र पढ़ाया गया। इस दिन के स्वामीवत्सल में ओसवाल नात, पाईचंद गच्छ, पोरवाल, ओसवाल, श्रीमाली, तरुणमंडल, स्तंभन तोर्थ जैन मंडल व उनके सहकारी, श्रीमाली, दशा श्रीमाली आदि खंभात के प्रायः सभी जैनियों ने साथ दिया। कुछ थोड़े से भाई शामिल नहीं हुये। खंभात शहर के जैन इतिहास में यह एक अश्रुत-पूर्व प्रसङ्ग आया था। इस प्रकार परस्पर प्रीति भोजन करना श्री आचार्य के ही शांतिमय उपदेश का ही परिणाम था। इस प्रकार प्रतिष्ठा महोत्सव आनंद और शान्ति से समाप्त हुआ। प्रतिष्ठा की खुशी में श्री भाईचंद कसलचंदजी ने ५०० रुपये कॉलेज के लिये दान दिये और विहार के समय इस रकम को १०००) कर दिया।
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