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( १३७ ) ही चातुर्मास की कृपा करें। उचित समझ कर विनती मान ली गई। २७ मई को श्रीचरणविजयजी महाराज, आचार्य श्री विजयकस्तूरसरिजी, श्री मित्रविजयजी और श्री विशुद्धविजयजी के साथ बड़ौदे की ओर रवाना हुये । अगले ही दिन आपने भी विहार किया और वटादरा, जारोला, बोरसद, आसोदर, वासद, रानोली होते हुये ४ जून को आप बड़ौदे पहुँचे। इस समय श्रीयुत् चंदुलाल डाह्याभाई की ओर से प्रवेश महोत्सव हुआ। यहां श्री चरणविजयजी का इलाज अच्छी तरह से होता रहा। .
मियांगाँव, जंबूसर, पादरा और बड़ौदा आदि स्थलों के. श्रावकों ने चातुर्मास के लिये बारंबार विनती की परन्तु खंभात की विनती स्वीकृत हो चुकी थी। अतः इन सब को निराश होना पड़ा। पंन्यासजी श्री समुद्रविजयजी, श्रीशिवविजयजी और श्री सत्यविजयजी को तो पहले ही खंभात छोड़ आये थे। जेठ सुदि ५. को श्री विजयलाभ सरिजी के शिष्य उपाध्यायजी श्री प्रेमविजयजी के स्वर्गवास होने का समाचार मिला। इन दिनों में व्याख्यान प्रायः श्री विजयललित सरिजी ही किया करते थे। बाबागांव वाले श्री सरदारमलजी दर्शनार्थ आये। उन्होंने श्री विजयललित सरिजी से प्रार्थना की कि उनकी भाक्ना, स्तवनों (भजनों) की किताब नये सिरे से छपवाने की है। उनकी भावना
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