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( १३२) भाद्रवा मुदि ११ को न्याय मंदिर में, जगद्गुरु श्री हीरविजयजी महाराज की जयन्ती बड़े समारोह से मनाई गई।
यहां एक घटना विशेष उल्लेखनीय है। यहां एक स्थानकवासी जैन साधु विराजमान थे। आपने १॥ मास के लिये उपवास का पच्चक्खान किया था। ४० के लगभग पवास हो चुके थे। आचार्य महाराज के दर्शन करने की उनकी बड़ी इच्छा थी। उनकी विनती पर श्री आचार्य महाराज उनके वहां पधारे। इस समय स्थानकवासी श्रावक समुदाय भी एकत्रित हुआ था। अतः आपने उपदेश भी दिया।
खंभात श्रीसंघ की आग्रह पूर्वक की गई विनती के कारण आपको खंभात जाना पड़ा। ४०-५० सज्जन वहां से विनती करने आये थे, और आपके वहां जाने पर भी खंभात निवासियों ने अपूर्व उत्साह और भक्ति का प्रदर्शन किया। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि सौ वर्षों में भी ऐसा शानदार स्वागत किसी का हुआ हो, ऐसा याद नहीं आता।
शहर के लोगों की तो बात ही क्या, खंभात की म्युनिसिपल कमेटी ने भी आपके वहां पधारने के कारण जीव दया आदि के शुभ कार्य करके अपना मनुष्य-कर्तव्य
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