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( १३०) के अवसर पर आपका व्याख्यान आपके उपरोक्त गुणों का परिचायिक था।
शताब्दि उत्सव की समाप्ति पर बड़ौदा संघ चातुर्मास के लिये आग्रह करने लगा। आपने उनकी इच्छा को उचित और सर्वथा उपयुक्त जान कर मान लिया। चातुर्मास में अभी देर थी। अतः आप आस पास के गाँवों में विचरते रहे। मियां गाँव में वैसाख वदि ६ को एक उत्सव हुआ जिस अवसर पर आपने उपाध्याय श्री पंन्यासजी ललितविजयजी महाराज और पंन्यासजी श्री कस्तूरविजयजी महाराज को आचार्य पदवी से विभूषित किया। इसी प्रकार आपने पंन्यासजी श्री उमंगविजयजी महाराज (जो उस समय बलाद में थे) और पंन्यासजी श्रीविद्याविजयजी महाराज (जो गुजरांवाला में थे) योग्य जान कर 'आचार्य पदवी प्रदान की और इसकी सूचना उनको तार द्वारा दे दी गई।
मियांगाँव में दरापुरा का श्री संघ विनती के लिये आया, अतः आप दरापुरा पधारे। वहां जेठ मुदि ५ को अहमदाबाद के संघ की विनती से पंन्यासजी श्री लाभविजयजी महाराज को आचार्य पद से विभूषित किया
और उनके शिष्य पंन्यासजी श्री प्रेमविजयजी को उपाध्याय पद से प्रतिष्ठित किया। इस अवसर पर मुनिराज श्री कपूर
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