________________
(१२८ ) से इसे पाटण में मनाने का फैसला हुआ। परन्तु अन्त में बड़ौदा में ही यह उत्सव किया जाना निश्चित हुआ।
यह सारा प्रबंध १५ दिन में किया गया। इतने थोड़े समय में इतनी सफलता प्राप्त कर लेने पर प्रबन्धकर्ता प्रशंसा के पात्र हैं। ऐसे महान् उत्सवों में छोटी छोटी ऋटियों का रह जाना भी अनिवार्य ही होता है परन्तु उनकी तरफ विशेष ध्यान नहीं देना चाहिये। व्यायाम के भी बहुत से करतब दिखाये गये थे। एक लड़के ने ३३ मन का बोझ दाँतों से उठाया, फिर २५ मन बोझ से लदी बैल गाड़ी अपनी छाती पर से गुज़ारी। ज्ञान मंदिर में प्राचीन जैन कला कौशल की भी प्रदर्शिनी की गई। महान् जैनाचार्यों की उत्तम उत्तम रचनाओं पर व्याख्यान हुये। जनता यह देख कर और भी चकित हुई जब दो मुसलमान-करीमबख्श और उनका पुत्र खड़े हुये और कहने लगे कि हम शुद्ध हृदय से कहते हैं कि हम पूर्णतया जैन हैं और उनका पुत्र अपने मुसलमानी नाम की बजाय ज्ञानदास कहलाना अधिक पसंद करता है। उसने जैन मुनियों की प्रशंसा और स्तुति में भजन भी गाये। ... इस उत्सव की बड़ी विशेषता यह थी कि 'अर्धमागधी भाषा' का ज्ञान प्राप्त करने पर विशेष जोर दिया गया। जैन धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में लिखे हुये हैं और २४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org