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(१२५) का एक भाग) में पधारे। वहां अहाई महोत्सव हुआ। यहां से आप शहर में पधारे। शताब्दि का काय्ये आरंभ हुआ। आपके प्रशिष्य रत्न श्री चरणविजयजी महाराज ने आपका अच्छा हाथ बटाया। शताब्दि फंड में चन्दा देने, लेख लिखने, व्याख्यानों का प्रबन्ध करने और अन्य भांति २ के काम करने में आपने जो परिश्रम किया उससे उनकी प्रगाढ़ गुरु भक्ति का तो परिचय मिलता ही है परन्तु उनकी कार्यदक्षता, विद्वता और उनके अथक परिश्रम का भी पूरा पूरा अनुभव होता है। - उनको जिव्हा में माधुर्य था। उनकी आत्मा में बल था। गुरुओं की उन पर कृपा दृष्टि थो। सेठों की उन पर श्रद्धाथी। उनके वचन में वशीकरण मंत्र जैसो प्रतिभा थी। जिन सजनों ने शताब्दि उत्सव देखा है, वे यह कहे बिना नहीं रह सकते कि उत्सव की सफलता का बहुत सा श्रेय श्री चरणविजयजी महाराज को ही है। शताब्दि उत्सव में क्या हुआ, इसके विषय में एक प्रखर विद्वान् भूगर्भ विद्या-विशारद माननीय श्रीमान् ज्ञानरत्न डाक्टर हीरानंदजी शास्त्री, एम. ए., एम. ओ. एल. डी. लिट., डायरेक्टर ऑफ आयोलोजी, बड़ौदा स्टेट की ही सम्मति जो शताब्दि स्मारक ग्रंथ में पृष्ठ १८८ से १६० तक में छपी है, अनुवाद का देना ही पर्याप्त है:
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