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दिव्य जीवन स्नेहमें किसी प्रकारका पर्दा नहीं है। मित्रसे क्या छिपाना? स्नेहसे स्नेहका आकर्षण होता है । स्नेहमूर्ति स्नेहीजनको चुम्बककी तरह खींचती है।
तुम्हारी सबसे बड़ी शोभा मनुष्यता है। मनुष्यतासे जीवनका श्रृंगार करो।
जहां आकृतिसे भी मनुष्य हो, प्रकृतिसे भी, वहीं मनुष्यताका निवास होता है। ऐसी मानवता पैसेसे, सत्तासे, बलसे या बुद्धिसे नहीं मिलती, ऐसी मानवता मिलती है देश, वेश, धर्म, सम्प्रदाय, जाति, कौम, प्रान्त, भाषा आदिकी दीवारोंको लांघकर दुनियाके हरमानवके साथ मानवताका व्यवहार करनेसे ही।
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