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दिव्य जीवन थी। इस अभिलाषाको पूरी करनेके लिये गुरुदेव जीवनभर कार्य करते रहे; इस कार्यको आगे बढ़ाना समाजका कर्तव्य है।
एक ऐसी व्यवस्थाकी भी आवश्यकता है जो ये देखे कि करुणामूर्ति गुरुदेवकी ये फूलवारियां पुष्पित-पल्लवित हो रही हैं या नहीं। धनरूपी जलके अभावमें ये मुरझा तो नहीं रही है ? 'अखिल भारतीय वल्लभ शिक्षा समिति' का निर्माण इन शिक्षाकी पुष्पवाटिकाओंके फलने-फूलनेके लिये नितान्त आवश्यक है। इस समितिके संरक्षणमें वल्लभकी ये पुष्पवाटिकायें हरीभरी रहे ।
गुरुदेवकी अभिलाषा थी जैन विश्वविद्यालयको स्थापना करना। उनकी अभिलाषा मधुर स्वप्न बनकर रह गई है, परन्तु उनके ये शब्द आज भी गूंज रहे हैं : “शिक्षाकी वृद्धिके लिये एक जैन विश्वविद्यालय नामक संस्था स्थापित होवे । फलस्वरूप सभी शिक्षित होवें और भूखसे पीड़ित न रहें।"
इस अभिव्यक्तिमें दो दृष्टिकोण स्पष्ट हैं : प्रथम, सभी शिक्षित हों यह । इसमें शिक्षाकी व्यापकताकी ओर संकेत है। द्वितीय, कोई भूखसे पीड़ित न रहे। इसमें ऐसी व्यावसायिक एवं उद्योग-हुनरवाली शिक्षाका उल्लेख है, जो विद्यार्थीको स्वावलम्बी बनाती है। . जैन विश्वविद्यालयमें वे उच्च कोटिकी आधुनिक शिक्षाके साथ साथ जैन दर्शनकी पीठिका (chair) भी स्थापित करना चाहते थे। जैन दर्शनके ऊंचे स्तरीय अध्ययन एवं शोधकार्य (research) के साथ साथ अन्य दर्शनोंका तुलनात्मक एवं समन्वयात्मक ज्ञान कराना उनका पुनीत उद्देश्य था। विद्यार्थीमें समन्वयदृष्टिका विकास हो यह उनकी भावना थी। उच्च शिक्षाके बिना आधुनिक युगमें विकास संभव नहीं। युगमूर्तिने इसीलिये जैन विश्वविद्यालयकी कल्पना की थी।
गुरुदेवने जीवनके अंतिम समयमें भी बम्बईमें संवत्सरि-सन्देशमें यह कामना की थी : "आज इस महान पर्वके दिन में जैन संघसे आशा रखता हूं कि वह जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी जैन यूनिवर्सिटी कायम करे।" ____ क्या जैन विश्वविद्यालयकी कल्पना सजीव नहीं बन सकेगी ? समाजके उचस्तरीय व्यावहारिक एवं दार्शनिक अध्ययनकी व्यवस्था करनेवाला विश्वविद्यालय क्या रंगीन ही बना रहेगा। समाजके आकाशमें गुरुदेवका यह स्वप्न उषाकी लालिमाके समान छिटका हुआ है। हजारों बालक-बालिकाओंकी स्वप्निल आंखोंमें वह इन्द्रधनुषी कल्पना बसी हुई है। क्या समाज पर लक्ष्मी
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