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दिव्य जीवन
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है उसे सुनिये पद्मावत महाकाव्य के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसीके सजीव एवं मर्मस्पर्शी शब्दों में ।
प्रसंग है : अनेक पक्षियोंको चिडीमारने पकड़ लिया । जो पक्षी सुखसे वृक्षों पर क्रीडा करते थे तथा फल-फूल, कन्दमूल खाते थे, जो सरोवरोंके शीतल जलमें अपने पंखोंको भिगोकर जलके छींटोंको आनंदमग्न होकर बिखराते थे, वे आज शिकारीकी डलियामें पंखोंको फड़फड़ाकर तड़प रहे हैं । हीरामन तोता भी छटपटा रहा है । उन पक्षियोंकी तड़पनका यह हृदयविदारक दृश्य रोंगटे खड़ा कर देता है । पक्षियोंका रुदन क्रन्दन, विलाप कितना भीषण है ! अन्तमें जायसी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं :
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'जो न होत अस पर मांस खाधू । कत पंखिन्ह कहं धरत बिधू । " - यदि दूसरोंका मांस खानेवाले इस संसारमें नहीं होते तो व्याघ इन पक्षियोंको क्यों कर पकड़ता ?
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गुरुदेवने अहिंसा और प्रेमको मनुष्यतारूपी रथके दो पहिये कहा । दिनांक २०-६-३८को श्री आत्मानन्द जैन कालेज, अम्बालाका उद्घाटन समारोह समाजरत्न श्री कस्तूरभाई लालभाईकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ । इस अवसर पर गुरुदेवने विद्यार्थियोंको यह संदेश दिया था :
'शिक्षाका उद्देश्य चरित्रका निर्माण करना है । इस कालेजमें इस प्रकारकी शिक्षा दी जाय जिससे विद्यार्थी शुद्ध एवं आदर्श जीवनवाला बने । उसमें मानवता, करुणा और प्राणिमात्र के लिये मैत्रीभावना हो । उसका खानपान शुद्ध हो । उसके आचार-विचार सुन्दर हो । ऐसे विद्यार्थी ही समाजके हीरे होते हैं । हीरोंकी कीमत उनकी चमकके कारण होती है, मनुष्यकी कीमत उसके चरित्रके कारण होती है । '
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आचार्यदेव के भाषणका प्रभाव गहरा था । आत्मानन्द जैन स्कूल लुधियाना एक मुसलमान विद्यार्थीने, जो उस समारोह में आया था, खड़े होकर मांसभोजनका परित्याग कर दिया। उसने कहा : किसी भी धर्मशास्त्र में मांसभक्षण करनेकी आज्ञा नहीं है । "
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१. बंदि मां सुआ करत सुख केली । भूरि पांख धारि मेलेसि डेली । तहवां बहुल पंखि खरभरहीं ।
आपु आपु कहं रोदन करहीं । - पद्मावत : मलिक मोहम्मद जायसी ।
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