SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिव्य जीवन २१ तिमिरभास्कर, तत्त्वनिर्णयप्रसाद तथा चिकागो प्रश्नोत्तर । भारतीय एवं विदेशी faraiने इन पुस्तकोंकी भूरि भूरि प्रशंसा की है । ऐसे विद्वान गुरुदेवके चरणों में रहने से मुनि वल्लभकी ज्ञानपिपासा बढ़ना स्वाभाविक था । फिर उनका दृढ़ विश्वास था कि : 'विद्ययाऽमृतमश्नुते । ' - विद्यासे ही अमरता प्राप्त होती है । (2 पूज्य वल्लभ ने अपने एक व्याख्यानमें कहा था : 'ज्ञान वाहन है । वह सत्पथ पर ले जाता है । परन्तु यदि उस वाहन पर मनुष्य सवार ही न हो तो वह मंजिल तक कैसे पहुँचाएगा? उस वाहन पर सवार होनेके लिये मनुष्य में लक्ष्यके प्रति पूर्ण विश्वास होना चाहिए । लक्ष्य है अमरताप्राप्ति । 11 मुनि वल्लभविजयजी के महान् जीवनकी अभी निर्माणावस्था थी । गुरुदेव श्री आत्मारामजी महाराजके ज्ञानमय एवं चारित्रमय वातावरणका उन पर अमिट प्रभाव पड़ा । पूज्य गुरुदेवकी ख्याति न केवल देशमें ही थी, अपितु विदेशमें भी थी । सन १८९३ ई० में चिकागो में सर्व धर्म परिषदका आयोजन हुआ था । गुरुदेव तो धर्मनिषेध के कारण समुद्रयात्रा नहीं कर सकते थे, अतः उन्होंने श्री वीरचन्द राघवजी गांधीको अपना प्रतिनिधि नाकर भेजा था। गुरुदेवने श्री गांधीको एक निबंध चिकागो सर्व धर्म परिषद में पढ़ने के लिए दिया था, जिसमें जैन दर्शनके संबंध में सुन्दर विवेचन था । इस निबंधकी रचनायें मुनि वल्लभविजयजीका सहयोग था । इस प्रकार गुरुदेव के विविध कार्योंमें मुनि वल्लभ हाथ बंटाते थे । वे गुरुदेवके सचिव ही बन गये थे । इन सबका परिणाम बहुत अच्छा हुआ । उनमें गुरुदेवकी कार्यदक्षता, सहिष्णुता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मधुर मानवताके गुण विकसित हुए । इन्हीं गुणों के कारण मुनि वल्लभ जनवल्लभ बन गये । मुनि वल्लभविजयजीके जीवन-भवनके दो सुन्दर स्तम्भ हैं : सत्संगति और विद्याध्ययन | ज्ञानी गुरुदेव एवं अन्य ज्ञानियोंकी सत्संगति से उनमें विद्या प्राप्त करनेकी तीव्र उत्कंठा बिकच गई। पूज्य वल्लभने शुद्धाचरण द्वारा मनको मंदिरके समान बनाया, और विद्याका पावन दीपक उसमें जलाया । सत्संगति और विद्याका प्रभाव कितना उत्तम होता है ! इनसे किसी भी मनुष्यका जीवन सुन्दर बन सकता है । मुनि वल्लभविजयजीकी निर्माणावस्था में ही, संवत् १९४७की चैत्र सुदी १० ( ता० २१ - ३ - १८९० ई०) को, उनके गुरु मुनि श्री हर्षविजयजीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy