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दिव्य जीवन है। गुरुदेवने एकता और प्रेमका संदेश दिया। हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी, हरिजन आदिमें एक ही उज्ज्वल ज्योति है। भेदभाव अज्ञानके कारण प्रतीत होता है। गुरुदेवका कथन था:
“विविध मनुष्य रंग-बिरंगे कांचके लम्प हैं । इन काचके लैम्पोंमें ज्योति जल रही है। वह ज्योति श्वेत तथा उज्ज्वल है, परन्तु भिन्न भिन्न रंगवाले कांचके लैम्प होनेके कारण भिन्न रंगोंवाली रोशनी दीखती है। इससे भ्रमित नहीं होना चाहिये। भीतर तो सभी में वही अकलुष, अनिंद्य, निर्मल ज्योति है । इसलिये प्रेमसे रहो।" ____ गुरुदेव समाजके प्रति अपने उत्तरदायित्वको भली भांति जानते थे। उन्होंने समाजोन्नतिके लिये जीवनमर प्रयास किया। व्यक्तिको ऊंचा उठानेके लिये उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। बम्बईकी एक विशाल सभामें गुरुदेवने कहा था : - “शुद्धाचरण द्वारा जीवनको मंदिरके समान पवित्र बनाओ। पावन मंदिरमें ही करुणामूर्ति आनन्दघन प्रभु विराजमान होंगे। मनको पवित्र बनानेके लिये शुद्ध आहार (शाकाहार), शुद्ध विहार (आचरण) तथा शुद्ध विचारकी आवश्यकता है। इन त्रिरत्नों (शुद्ध आहार, शुद्ध विहार, शुद्ध विचार) का दिव्य हार पहनो।"
गुरुदेव शुद्धाचरणको मानव-उत्थानकी सुन्दर सीढी मानते थे। उन्होंने कहा था : “धर्म प्रेम सिखाता है, वैरभाव नहीं। धर्म पुष्प है, कांटा नहीं। तुम प्राणिमात्रके लिये प्रेमभाव रखो।" २
गुरुदेवने मनुष्यमात्रको सुखकी कुंजी बताते हुए कहा था : “यदि सुखी बनना चाहते हो तो दूसरोंको सुख पहुंचाओ।"
राष्ट्रभावना समझाते हुए उन्होंने कहा था : “ देशप्रेमके बिना राष्ट्रका विकास असम्भव है। देशप्रेमका आधार है बलिदान । नेताओंको चाहिये कि वे अपने जीवनको त्यागमय बनावें। पहले घरमें चिराग जलाओ, फिर मस्जिदमें। पहले अपनेको सुधारो।"
महाराणा प्रतापकी जयन्तीके समारोहमें गुजरांवाला (हाल पाकिस्तान) में वि. सं. १९९७ में उन्होंने कहा था : ।
"महाराणा प्रतापकी देशभक्ति अनुपम थी। जो देशकी स्वाधीनताके लिये बन बन भटके थे, जंगली कन्दमूल-फूल खाकर जिन्होंने दिन बिताये
२. चत्तारि धम्मदारा : खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे । अर्थात् - क्षमा, संतोष, सरलता और नम्रता ये चार धर्मके द्वार है। --स्थानांगसूत्र ।
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