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________________ सबमें उच्च कोटिके प्रतिभासम्पन्न साहित्यकारको झलक मिलती है। उनके साहित्यको गम्भीरता और उच्चताको देखकर मैं निश्चय रूपसे कहता हूं कि उस पर एक सुन्दर और गौरवपूर्ण शोधग्रन्थ (Thesis) लिखा जा सकता है। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि उनके जीवनग्रन्थको लिखनेके पहले मैंने उनके समस्त प्राप्य साहित्यको न केवल पढ़ा ही है वरन् उसका चिन्तन तथा मनन भी किया है। 'पंचामृत,' 'वल्लभ-वाणो' आदि अध्यायोंमें उनके निबन्धोंका सार रखनेका मैने प्रयास किया है। आधुनिक विश्वको भौतिक धमचमाहटमें मनुष्य अमर सुखकी बांसुरीका स्वर सुनने के लिए तड़प रहा है। मानवके विशाल बंगले, सुन्दर कारें तथा विपुल बैंकबेलेंस भी उसे शान्ति प्रदान नहीं कर पाते। ऐसे समयमें दिव्य जोवन ही शीतल आम्रकुंजोंके समान हैं, जिनकी शीतल छायाके नीचे बैठनेसे असीम शान्ति मिलती है और मन तृप्त हो जाता है। गुरुदेवका दिव्य जीवन ऐसी ही सघन छायावाला आम्रकुंज है। मैं इस आम्रकुंजकी शीतल छायामें बैठकर उनकी वाणीरूपी बांसुरीका मनमोहक स्वर सुन रहा हूं। ____ गुरुदेवकी विश्वमैत्री एवं करुणा विशाल थी। उन्होंने 'अहिंसा परमो धर्मः'को विश्वमें फैलानेके लिए जीवनभर कार्य किया। युद्धकी लपटोंमें जल रहे विश्वको उन्होंने अहिंसा और प्रेमका संदेश सुनाया। उनका अहिंसाका सन्देश हिन्दू, मुसलमान, जैन, सिक्ख, ईसाई, पारसी, हरिजन आदि भाईबहनोंने प्रेमसे सुना और वे अहिंसाधर्मकी ओर प्रवृत्त हुए। अनेक मनुष्योंने शाकाहार अपनाया और शराबको सदा-सर्वदाके लिए छोड़ दिया। ऐसी थी गुरुदेवकी सेवाभावना। अनेक विदेशी विद्वान भी गुरुदेवकी प्रतिभा, सुशीलता एवं समतासे प्रभावित हुए थे। गुरुदेवके विषयमें अधिक लिखनेकी अभिलाषा अभी भी दिलमें है। उनके साहित्यमें मानवजीवनका अमर खजाना भरा हुआ है; उसे लेनेके लिए अन्तशक्ति चाहिये । गुरुदेव स्वर्गसे आशीर्वाद देंगे कि वह अन्तर्रेरणा मिल जाय और उनका साहित्य-पीयूष पीकर लेखनी मचल उठे। आशा है, वह सुअवसर भी कभी आएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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