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गांधीजी की जैन धर्म को देन
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के पोषक ही रहे । उच्च-नीच भाव और छूआछूत को दूर करने की बात करते हुए भी के जातिवादी ब्राह्मण परम्परा के प्रभाव से बच न सके और व्यवहार तथा धर्मक्षेत्र में उच्च-नीच भाव और छूआछूतपने के शिकार बन गये । यज्ञीय हिंसा के प्रभाव से वे जरूर बच गये और पशु पक्षी की रक्षा में उन्होंने हाथ ठीक ठीक बटाया; पर वे अपरिग्रह के प्राण मूर्छा त्याग को गँवा बैठे। देखने में तो सभी फिरके परिग्रही मालूम होते रहे; पर अपरिग्रह का प्राण उनमें कम से कम रहा । इसलिए सभी फिरकों के त्यागी अपरिग्रह व्रत की दुहाई देकर नङ्गे पांव से चलते देखे जाते हैं, लुचन रूप से बाल तक हाथ से खींच डालते हैं, निर्वसन भाव भी धारण करते देखे जाते हैं, सूक्ष्म-जन्तु की रक्षा के निमित्त मुँह पर कपड़ा तक रख लेते हैं; पर वे अपरिग्रह के पालन में अनिवार्य रूप से आवश्यक ऐसा स्वावलंबी जीवन करीब-करीब गँवा बैठे हैं । उन्हें अपरिग्रह का पालन गृहस्थों की मदद के सिवाय सम्भव नहीं दीखता । फलतः, वे अधिकाधिक परपरिश्रमावलम्बी हो गए हैं 1
बेशक, पिछले ढाई हजार वर्षों में देश के विभिन्न भागों में ऐसे इने-गिने अनगार त्यागी और सागार गृहस्थ अवश्य हुए हैं जिन्होंने जैन परम्परा की मूर्च्छित-सी धर्मचेतना में स्पन्दन के प्राण फूँके । पर एक तो वह स्पन्दन साम्प्रदायिक ढंग का था जैसा कि अन्य सम्प्रदायों में हुआ है और दूसरे वह स्पन्दन ऐसा कोई दृढ़ नींव पर न था जिससे चिरकाल तक टिक सके । इसलिए बीचबीच में प्रकट हुए धर्मचेतना के स्पन्दन अर्थात् प्रभावनाकार्य सतत चालू रह न सके ।
पिछली शताब्दी में तो जैन समाज के त्यागी और गृहस्थ दोनों की मनोदशा विलक्षण-सी हो गई थी । वे परम्पराप्राप्त सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह के आदर्श संस्कार की महिमा को छोड़ भी न सकते थे और जीवनपर्यन्त वे हिंसा, सत्य और परिग्रह के संस्कारों का ही समर्थन करते जाते थे । ऐसा माना जाने लगा था कि कुटुम्ब, समाज, ग्राम राष्ट्र आदि से संबन्ध रखनेवाली प्रवृत्तियाँ सांसारिक हैं, दुनियावी हैं, व्यावहारिक हैं । इसलिए ऐसी आर्थिक प्रौद्योगिक और राजकीय प्रवृत्तियों में न तो सत्य साथ दे सकता है, न अहिंसा काम कर सकती है और न परिग्रह व्रत ही कार्यसाधक बन सकता है । ये धर्म सिद्धान्त सच्चे हैं सही, पर इनका शुद्ध पालन दुनिया के बीच संभव नहीं । इसके लिए तो एकान्त वनवास और संसार त्याग ही चाहिये । इस विचार ने नगार त्यागियों के मन पर भी ऐसा प्रभाव जमाया था कि वे रात-दिन सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह का उपदेश करते हुए भी दुनियावी - जीवन में उन उपदेशों के
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