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________________ ४६४ जैन धर्म और दर्शन वाद प्रकाशित किया है। संस्कृत नहीं जाननेवालों के लिए श्री मुख्तार जी ने यह अच्छा संस्करण उपस्थित किया है। इसी प्रकार मंदिर की ओर से पं० श्री दरबारी लाल कोठिया कृत 'प्राप्तपरीक्षा' का हिन्दी अनुवाद भी प्रसिद्ध हुआ है। वह भी जिज्ञासुओं के लिए अच्छी सामग्री उपस्थित करता है। ___'श्री दिगम्बर जैन क्षेत्र श्री महावीर जी' यह एक तीर्थ रक्षक संस्था है किन्तु उसके संचालकों के उत्साह के कारण उसने जैन साहित्य के प्रकाशन के कार्य में भी रस लिया है और दूसरी वैसी संस्थाओं के लिए भी वह प्रेरणादायी सिद्ध हुई है । उस संस्था की ओर से प्रसिद्ध आमेर ( जयपुर ) भंडार की सूची प्रकाशित हुई है। और 'प्रशस्तिसंग्रह' नाम से उन हस्तलिखित प्रतियों के अंत में दी गई प्रशस्तित्रों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। उक्त सूची से प्रतीत होता है कि कई अपभ्रंश ग्रन्थ अभी प्रकाशन को राह देख रहे हैं। उसी संस्था की ओर से जैनधर्म के जिज्ञासुओं के लिए छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित हुई हैं । 'सर्वार्थ सिद्धि' नामक 'तत्त्वार्थसूत्र' की व्याख्या का संक्षिप्त संस्करण भी प्रकाशित हुआ है। ___ माणिकचन्द्र दि० जैन-ग्रन्थ माला, बंबई की ओर से कवि हस्तिमल्ल के शेष दो नाटक 'अंजना-पवनंजय नाटक and सुभद्रा नाटिक' के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। उनका संपादन प्रो० एम. वी. पटवर्धन ने एक विद्वान् को शोभा देने वाला किया है । ग्रन्थ की प्रस्तावना से प्रतीत होता है कि संपादक संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ पंडित हैं। वीर शासन संघ, कलकत्ता की ओर से The Jaina Monuments and Places of First class Importance' यह ग्रन्थ श्री टी० एन्० रामचन्द्र द्वारा संगृहीत होकर प्रकाशित हुश्रा है। श्री रामचन्द्र इसी विषय के मर्मज्ञ पंडित हैं अतएव उन्होंने अपने विषय को सुचारुरूप से उपस्थित किया है। लेखक ने पूर्वबंगाल में जैनधर्म-इस विषय पर उक्त पुस्तक में जो लिखा है वह विशेषतया ध्यान देने योग्य है । ___ डॉ० महाण्डले ने 'Historical Grammar of Inscriptional Prakrits' ( पूना १९४८) में प्रमुख प्राकृत शिलालेखों की भाषा का अच्छा 'विश्लेषण किया है। और अभी अभी Dr. Bloch ने 'Les Inscriptions d' Asoka' (Paris 1950) में अशोक की शिलालेखों की भाषा का अच्छा विश्लेषण किया है। .. भारतीय पुरातत्त्व के सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ० विमलाचरण लॉ ने कुछ जैन सूत्रों के विषय में लेख लिखे थे। उनका संग्रह 'सम् जैन केनोनिकल सूत्राज' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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