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________________ जैन धर्म और दर्शन २ मति श्रुत ज्ञान की चर्चा श्रुत ज्ञान की सामान्य रूप से विचारणा करने के बाद ग्रन्थकार ने उसकी विशेष विचारणा करने की दृष्टि से उस के पाँच भेदों में से प्रथम मति और श्रुतं का निरूपण किया है । यद्यपि वर्णनक्रम की दृष्टि से मति ज्ञान का पूर्णरूपेण निरूपण करने के बाद ही श्रुत का निरूपण प्राप है, फिर भी मति और का स्वरूप एक दूसरे से इतना विविक्त नहीं है कि एक के निरूपण के समय दूसरे के निरूपण को टाला जा सके इसी से दोनों की चर्चा गई है [ पृ० १६ पं० ६ ] । इस चर्चा के आधार से तथा संग्रहीत अनेक टिप्पणों के आधार से जिन खास खास मुद्दों पर करना है, वे मुद्दे ये हैं ( १ ) मति और श्रुत की भेदरेखा का प्रयत्न । ( २ ) श्रुतनिश्रित और श्रुतनिश्रित मति का प्रश्न । (३) चतुर्विध वाक्यार्थ ज्ञान का इतिहास । ( ४ ) हिंसा के स्वरूप का विचार तथा विकास । (५) स्थानपतितत्व और पूर्वगत गाथा । (६) मति ज्ञान के विशेष निरूपण में नया ऊहापोह । ४०० ( १ ) मति और श्रुत की भेदरेखा का प्रयत्न जैन कर्मशास्त्र के प्रारम्भिक समय से ही ज्ञानावरण कर्म के पाँच भेदों में मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण ये दोनों उत्तर प्रकृतियाँ बिलकुल जुदी मानी गई हैं। अतएव यह भी सिद्ध है कि उन प्रकृतियों के श्रावार्य रूपसे माने गए मति और श्रुत ज्ञान भी स्वरूप में एक दूसरे से भिन्न ही शास्त्रकारों को इष्ट हैं । मति और श्रुत के पारस्परिक भेद के विषय में तो पुराकाल से ही कोई मतभेद न था और आज भी उस में कोई मतभेद देखा नहीं जाता; पर इन दोनों का स्वरूप इतना अधिक संमिश्रित है या एक दूसरे के इतना अधिक निकट है कि उन दोनों के बीच भेदक रेखा स्थिर करना बहुत कठिन कार्य है; और कभी-कभी तो वह कार्य असंभव सा बन जाता है । मति और श्रुत के बीच भेद है या नहीं, अगर है तो उसकी सीमा किस तरह निर्धारित करना; इस बारे में विचार करने वाले तीन प्रयत्न जैन वाङ्मय में देखे जाते हैं। पहला प्रयत्न श्रागमानुसारी है, दूसरा श्रागममूलक तार्किक है, और तीसरा शुद्ध तार्किक है । 1 [ ४६ ] पहले प्रयत्न के अनुसार मति ज्ञान वह कहलाता है जो इन्द्रियमनोजन्य है तथा अवग्रह आदि चार विभागों में विभक्त है । और श्रुत ज्ञान वह Jain Education International साथ साथ कर दी उस भाग पर यहाँ विचार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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