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एक-जीवाश्रित भावों के उत्तर भेद
३३६ दसवें वाले सब तेरहवें में असिद्धत्व, लेश्या और गति; चौदहवें में गति और असिद्धत्व । __क्षायिक-चौथे से ग्यारहवें गुणस्थान तक में सम्यक्त्व, बारहवें में सम्यक्त्व और चारित्र दो और तेरहवे-चौदहवें में-नौ क्षायिक भाव ।। __ औपशमिक-चौथे से आठ तक सम्यक्त्व; नौवें से ग्यारहवें तक सम्यक्त्व और चारित्र ।
, पारिणामिक-पहले में तीनों; दूसरे से बारहवें तक में जीवस्व और भव्यत्व दो; तेरहवें और चौदहवें में एक जीवत्व । ई० १९२२]
चौथा कर्मग्रन्थ
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