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________________ ३२१ अवधिदर्शन (११) 'अवधिदर्शन' ___अवधिदर्शन और गुणस्थान का संबन्ध विचारने के समय मुख्यतया दो बातें जानने की हैं-(१) पक्ष-भेद और (२) उनका तात्पर्य । (१) पक्ष-भेदप्रस्तुत विषय में मुख्य दो पक्ष हैं—(क) कार्मग्रंथिक और (ख) सैद्धान्तिक । (क) कार्मग्रन्थिक-पक्ष भी दो हैं। इनमें से पहला पक्ष चौथे आदि नौ गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानता है। यह पक्ष, प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ की २६ वी गाथा में निर्दिष्ट है, जो पहले तीन गुणस्थानों में अज्ञान माननेवाले कार्मग्रंथिकों को मान्य है। दूसरा पक्ष, तीसरे आदि दस गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानता है। यह पक्ष चौथे कर्मग्रन्थ को ४८ वी गाथा में तथा प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ की ७० और ७१ वी गाथा में निर्दिष्ट है, जो पहले दो गुणस्थान तक अज्ञान मानने वाले कार्मग्रंथिकों को मान्य है। ये दोनों पक्ष, गोम्मटसार-जीवकाण्ड की ६६० और ७०४ थी गाथा में हैं। इनमें से प्रथम पक्ष, तत्त्वार्थ-अ. १ के ८ वें सत्र की सर्वार्थसिद्धि में भी है। वह यह है --- 'अवधिदर्शने असंयतसम्यग्दृष्ट्यादीनि क्षीणकषायान्तानि ।' (ख) सैद्धान्तिक-पक्ष बिल्कुल भिन्न है। वह पहले आदि बारह गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानता है। जो भगवती-सूत्र से मालूम होता है। इस पक्ष को श्री मलगिरि सूरि ने पञ्चसंग्रह-द्वार १ की ३१ वी गाथा की टीका में तथा प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ की २६ वीं गाथा की टीका में स्पष्टता से दिखाया है। 'ओहिदसणअणागारोवउत्ता णं भंते ! किं नाणी अन्नाणी ? गोयमा ! णाणी वि अन्नाणी वि । जइ नाणी ते अत्थेगइआ तिण्णाणी, अत्थेगइआ चउणाणी। जे तिण्णाणी, ते आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी। जे चउणाणी ते आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी अोहिणाणी मणपज्जवणाणी। जे अण्णाणी ते णियमा मइअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगनाणी । __-भगवती-शतक ८, उद्देश्य २। (२) उक्त पक्षों का तात्पर्य (क) पहले तीन गुणस्थानों में अज्ञान माननेवाले और पहले दो गुणस्थानों में अज्ञान माननेवाले, दोनों प्रकार के कार्मग्रंथिक विद्वान् अवधिज्ञान से अवधिदर्शन को अलग मानते हैं, पर विभङ्गज्ञान से नहीं । वे कहते हैं कि विशेष अवधि-उपयोग से सामान्य अवधि-उपयोग भिन्न है; इसलिए जिस प्रकार अवधि-उपयोगवाले सम्यक्त्वी में अवधिज्ञान और अवधिदर्शन, दोनों अलग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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