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________________ 'षडशीतिक' . २६१ प्रस्तुत ग्रंथ बनाने का तात्पर्प यह है कि सांसारिक जीवों की भिन्न-भिन्न अवस्थात्रों का वर्णन करके यह बतलाया जाए कि अमुक-अमुक अवस्थाएँ औपाधिक, वैभाविक किंवा कर्म-कृत होने से अस्थायी तथा हेय हैं; और अमुकश्रमुक अवस्था स्वाभाविक होने के कारण स्थायी तथा उपादेय है। इसके सिवा यह भी बतलाना है कि, जीव का स्वभाव प्रायः विकास करने का है । अतएव वह अपने स्वभाव के अनुसार किस प्रकार विकास करता है और तद्वारा औपाधिक अवस्थाओं को त्याग कर किस प्रकार स्वाभाविक शक्तियों का आविर्भाव करता है। ___ इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए प्रस्तुत ग्रंथ में मुख्यतया पाँच विषय वर्णन किये हैं (१) जीवस्थान, (२) मार्गणास्थान, (३) गुणस्थान, (४) भाव और(५) संख्या। - इनमें से प्रथम मुख्य तीन विषयों के साथ अन्य विषय भी वर्णित हैंजीवस्थान में (१) गुणस्थान, (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेश्या, (५) बन्ध, (६) उदय, (७) उदीरणा और (८) सत्ता ये आठ विषय वर्णित हैं । मार्गणा स्थान में (१) जीवस्थान, (२) गुणस्थान, (३) योग, (४) उपयोग, (५) लेश्या और (६) अल्प-बहुत्व, ये छः विषय वर्णित हैं तथा गुणस्थान में (१) जीवस्थान. (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेश्या, (५) बन्ध-हेतु, (६) बन्ध, (७) उदय (८) उदीरणा, (६) सत्ता और (१०) अल्प-बहुत्व, ये दस विषय वर्णित हैं। पिछले दो विषयों का अर्थात् भाव और संख्या का वर्णन अन्य-अन्य विषय के वर्णन से मिश्रित नहीं है, अर्थात् उन्हें लेकर अन्य कोई विषय वर्णन नहीं किया है। ___ इस तरह देखा जाए तो प्रस्तुत ग्रंथ के शब्दात्मक कलेवर के मुख्य पाँच हिस्से हो जाते हैं। पहिला हिस्सा दूसरी गाथा से आठवीं गाथा तक का है, जिसमें जीवस्थान का मुख्य वर्णन कर के उसके संबन्धी उक्त आठ विषयों का वर्णन किया गया है। दूसरा हिस्सा नवी गाथा से लेकर चौवालिसवीं गाथा तक का है, जिसमें मुख्यतया मार्गणास्थान को लेकर उसके संबंध से छः विषयों का वर्णन किया गया है । तीसरा हिस्सा पैंतालीसवीं गाथा से लेकर त्रेसठवीं गाथा तक का है, जिसमें मुख्यतया गुणस्थान को लेकर उसके आश्रय से उक्त दस विषयों का वर्णन किया गया है । चौथा हिस्सा चौंसठवीं गाथा से लेकर सत्तरवीं गाया तक का है, जिसमें केवल भावों का वर्णन है । पाँचवाँ हिस्सा इकहत्तरवी गाथा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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