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________________ मैं हिन्दी लिखने की ओर क्यों झुका ? मैं नित्य की तरह एक दिन अपने काम में लगा ही था कि मेरे मित्र श्री रतिभाई ने आकर मुझ से इतना ही कहा कि आपको पुरस्कार के लिए श्री जेठालाल जोशी कहने आऐंगे, तो उसका अस्वीकार नहीं करना, इत्यादि । यह सुनकर मैं एकदम आश्चर्य में पड़ गया। आश्चर्य कई बातों का था। पुरस्कार मुझे किस बात के लिए ? फिर श्री जेठालाल जोशी से इसका क्या सम्बन्ध ? अभी ऐसी कौन-सी बात है कि जिसके लिए मैं पसन्द किया गया ? फिर पुरस्कार क्या होगा ? क्या कोई पुस्तक होगी या अन्य कुछ ! इत्यादि । आश्चर्य कुछ अर्से तक रहा । मैंने अपने मानसिक प्रश्नों के बारे में पूछताछ भी नहीं की यह सोचकर कि श्री जोशीजी को तो श्राने दो। जब वे मिले और उनसे पुरस्कार की भूमिका जान ली तब मैंने उसका स्वीकार तो किया, पर मन में तब से आज तक उत्तरोत्तर श्राश्चर्य की परम्परा अधिकाधिक बढ़ती ही रही है। कई प्रश्न उठे। कुछ ये हैं-मैंने जो कुछ हिन्दी में लिखा उसकी जानकारी वर्धा राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को कैसे हुई ? क्या इस जानकारी के पीछे मेरे किसी विशेष परिचित का हाथ तो नहीं है ? समिति ने मेरे लिखे सब हिन्दी पुस्तक-पुस्तिका, लेख श्रादि देखे होंगे या कुछ ही ? उसे यह सब लेख-सामग्री कहाँ से कैसे मिली होगी जो मेरे पास तक नहीं है ? अच्छा, यह सामग्री मिली भी हो तो वह पारितोषिक के पात्र है-इसका निर्णय किसने किया होगा? निर्णय करने वालों में क्या ऐसे व्यक्ति भी होंगे जिन्होंने मेरे सारे हिन्दी साहित्य को ध्यान से अथेति देखा भी होगा और उसके गुण-दोषों पर स्वतन्त्र भाव से विचार भी किया होगा? ऐसा तो हुआ न होगा कि किसी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने सिफारिश की हो और इतर सभ्यों ने जैसा बहुधा अन्य समितियों में होता है वैसे, एक या दूसरे कारण से उसे मान्य रखा हो ? अगर ऐसा हुआ हो तो मेरे लिए क्या उचित होगा कि मैं मात्र अहिन्दी भाषा-भाषी होने के नाते इस पुरस्कार को स्वीकार करूँ? न जाने ऐसे कितने ही प्रश्न मन में उठते रहे। कुछ दिनों के बाद श्री जेठालाल जोशी मिले । फिर श्री मोहनलाल भट्ट के साथ भी वे मिले। मैंने उक्त प्रश्नों में से महत्त्व के थोड़े प्रश्न उनके सामने रखे। मैं अनजान था कि कार्यकारिणी समिति के सदस्य कितने, कौन-कौन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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