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द्वितीय खण्ड
१. जैन धर्म और दर्शन १. भगवान पार्श्वनाथ की विरासत [ओरिएन्टल कोन्फरंस, ई० १६५३ ] ३ २. दीर्घतपस्वी महावीर
[मालवमयूर, ई० १६३३ ] २६ ३. भगवान् महावीर का जीवन [ जैन सं. शं० मं० पत्रिका, ई. १९४७ ] ३४ ४. निर्ग्रन्थ संप्रदाय [ ,
,,] ५० ५. जैन धर्म का प्राण [ई० १६४६ ]
११६ ६. जैन संस्कृति का हृदय [विश्ववाणी, ई० १६४२ ] १३२ ७. अनेकान्तवाद की मर्यादा [अनेकान्त, ई० १६३०] १४७ ८. अनेकान्तवाद [प्रमाणमीमांसा की प्रस्तावना, ई० १६३६] १६१ ६. आवश्यक क्रिया [पंचप्रतिक्रमण की प्रस्तावना, ई. १९२१1 १७४ १०. कर्मतत्त्व [पंचम कर्मग्रन्थ का 'पूर्व कथन' ई० १६४१] २०५ ११. कर्मवाद | कर्मविपाक की प्रस्तावना, ई० १६१८] २१२ १२. कर्मस्तव [द्वितीय कर्मग्रन्थ की प्रस्तावना, ई० १६१८] २४५ १३. बन्धस्वामित्व [तीसरे कर्मग्रन्थ की प्रस्तावना, ई० १६१८] २५२ १४. षडशीतिक [चौथे कर्मग्रन्थ की प्रस्तावना, ई० १६२२] २५७ १४. कुछ पारिभाषिक शब्द [ चौथा कर्मग्रन्थ, ई० १६२२ ] ૨૯૭
लेश्या-२६७, पंचेन्द्रिय-३००, संज्ञा-३०१, अपर्याप्त-३०३, उपयोग का सहक्रमभाव-३०६, एकेन्द्रिय में श्रुतज्ञान--३०८, योगमार्गणा-३०६, सम्यक्त्व-३११, अचतुर्दशन-३१६, अनाहारक-३१८, अवधिदर्शन-३२१, आहारक-३२२, दृष्टिवाद-३२३, चक्षुर्दर्शन के साथ योग-३२८, केवलीसमुद्धात-३२६, काल-३३१, मूलबन्धहेतु-३३४, उपशमक और
क्षपक का चारित्र-३३५, भाव-३३७ १६. दिगम्बर-श्वेताम्बर के समान-असमान मन्तव्य [ ] ३४० १७. कार्मग्रन्थिकों और सैद्धान्तिकों के मतभेद [ ,, १८. चौथा कर्मग्रन्थ तथा पंचसंग्रह ।
३४४ १६. चौथे कर्मग्रन्थ के कुछ विशेष स्थल
३४५ २०. 'प्रमाणमीमांसा' [प्रस्तावना, ई० १६३६ ]
३४६ २१. शानबिन्दु परिचय [ज्ञानबिन्दु की प्रस्तावना, ई० १६४०] ३७५
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