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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत १७ जब चार याम में से महावीर के पाँच महाव्रत और बुद्ध के पाँच शील के विकास पर विचार करते हैं तब कहना पड़ता है कि, पार्श्वनाथ के चार याम की परंपरा का ज्ञातपुत्र ने अपनी दृष्टि के अनुसार और शाक्यपुत्र ने अपनी दृष्टि के अनुसार विकास किया है २६, जो अभी जैन और बौद्ध परंपरा में विरासतरूप से विद्यमान है । श्रुत I हम अन्तिम विरासत — श्रुतसम्पत्ति — पर आते हैं । श्वेतांबर - दिगंबर दोनों के वाङ्मय में जैन श्रुत का द्वादशांगी रूप से निर्देश है । २७ आचारांग आदि ग्यारह अंग और बारहवें दृष्टिवाद अंग का एक भाग चौदह पूर्व, ये विशेष प्रसिद्ध हैं | आगमों के प्राचीन समझे जाने वाले भागों में जहाँ-जहाँ किसी के नगर धर्म स्वीकार करने की कथा है वहाँ या तो ऐसा कहा गया है कि वह सामायिक आदि ग्यारह अंग पढ़ता है या वह चतुर्दश पूर्व पढ़ता है । २८ हमें इन उल्लेखों के ऊपर से विचार यह करना है कि, महावीर के पूर्व पार्श्वनाथ या उनकी परंपरा की श्रुत सम्पत्ति क्या थी ? और इसमें से महावीर को विरासत मिली या नहीं ? एवं मिली तो किस रूप में ? शास्त्रों में यह तो स्पष्ट ही कहा गया है कि, आचारांग आदि ग्यारह अंगों २६. अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी ने अन्त में जो "पार्श्वनाथ चा चातुर्याम धर्म" नामक पुस्तक लिखी है उसका मुख्य उद्देश ही यह है कि, शाक्यपुत्र ने पार्श्वनाथ के चातुर्योमधर्म की परंपरा का विकास किस-किस तरह से किया, यह बतलाना । २७. षट्खण्डागम ( धवला टीका ), खण्ड १, पृष्ठ ६ : बारह अंगगिज्झा । समवायांग, पत्र १०६, सूत्र १३६ : दुवालसंगे गणिपिडगे । नन्दीसूत्र ( विजयदानसूरि संशोधित ) पत्र ९४ : अंगपविहं दुवालसविहं पण्णत्तं । २८ ग्यारह अंग पढ़ने का उल्लेख - भगवती २ १ ११-६ ज्ञाता धर्मकथा, ० १२ । चौदह पूर्व पढ़ने का उल्लेख - भगवती ११-११-४३२, १७-२-६१७ ; ज्ञाताधर्म - कथा, अ० ५ । ज्ञाता ० ० १६ में पाण्डवों के चौदह पूर्व पढ़ने का व द्रौपदी के ग्यारह अंग पढ़ने का उल्लेख है । इसी तरह ज्ञाता० २ - १ में काली साध्वी बन कर ग्यारह अंग पढ़ती है, ऐसा वर्णन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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