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________________ प्रथम खण्ड १. मैं हिन्दी लिखने की ओर क्यों झुका ? विषयानुक्रमणिका १. धर्म और समाज १. धर्म का बीज और उसका विकास [ 'धर्म और समाज', ई० १६५१ ] ३ २. धर्म और संस्कृति [ नया समाज, ई० १९४८ ] Ε ३. धर्म और बुद्धि [ श्रोसवाल नवयुवक, ई० १६३६ ] १३ ४. विकास का मुख्य साधन [ संपूर्णानन्द अभिनन्दन ग्रंथ, ई० १६५० ] १८ ५. जीवन दृष्टि में मौलिक परिवर्तन [ नया समाज, ई० १९४८ ] २६. ६. समाज को बदलो [ तरुण, ई० १६५१] ७. बालदीक्षा [ तरुण, ई० १६४६ ] ८. धर्म और विद्या का तीर्थ - वैशाली [ ई० १६५३ ] ६. एक पत्र [ श्रोसवाल नवयुवक, वर्ष ८, अंक ११ j २. दार्शनिक मीमांसा १. दर्शन और सम्प्रदाय [ न्यायकुमुदचन्द्र का प्राक्कथन, ई० १६४१ ] २. दर्शन शब्द का विशेषार्थं [ प्रमाणमीमांसा, ई० १६३६ ] ३. तत्त्वोपप्लवसिंह [ भारतीय विद्या, ई० १६४१ ] ४. ज्ञान की स्वपर प्रकाशकता [ प्रमाणमीमांसा, ई० १६३६ ] [ 1 ५. आत्मा का स्वपरप्रकाश ( १ ) ६. आत्मा का स्वपरप्रकाश (२) [ ७. प्रमाणलक्षणों की तार्किक परंपरा [" ] 33 ] ८. प्रामाण्य स्वतः या परतः [ - Jain Education International "" " " " 23 17 For Private & Personal Use Only 1 ३० ३८ ૪૨ ६२ ६७ ७२ ७३ ११० ११३ -११५ ११७ १२२ www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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