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________________ २८७ - तहत्ति ६० दृष्टान्त १८१, १२, १६५ तात्पर्य टीका]. ११७, १२२, १३६, | दृष्टान्ताभास २०७, २०८,२१०,२११ १६१-१६४, १६८, १७१, १७३, , दृष्टि दृष्टि २४७ १७७, १८५, १८६, १६०, २१३, देवसूरि ७७, १८, १२०, १४५, २२६ १५३, १५४, १७८, १८१, १८६, तीर्थकर १२६, २०६ १८८, १६३-१६५,२०६,२२३ तुकाराम २७ युसेन तेरापंथ ४८ फिलॉसॉफी ऑफ उपनिषद् २४० तैत्तिरीय २४०, २४८ द्रव्य-गुण-पर्याय १४३-१४६ त्रिपिटक ५५ द्रव्यपर्यायात्मक १४२ दर्शन ६३, ६७, ७२, १०१, २३१ । द्रव्यपर्यायवाद १५० और संप्रदाय ६७ द्रव्यपर्यायात्मकवाद १४८ शब्द का विशेषार्थ ७२-७७ द्रव्यार्थिक १४५ के चार पक्ष १०१ द्विरूपता १५० का अर्थ २३१ धर्म ९१, १४४ दशवकालिक २४५, २४६, २६० की व्याख्याओं ३ नियुक्ति] १८२, १८३ का बीज और विस्तार ३ का बीज जिजोविषामें ४ दार्शनिक साहित्य शैली के ५ प्रकार १७ की आत्मा और देह है और संस्कृति दिगम्बर-श्वेताम्बर ८८, १८२, १८६, और बुद्धि १९२, १६८, २२६, २२७, २२६ के दो रूप दिगम्बरीय १८७ ईसाई दिङ्नाग ९६, १०५, १०६, ११८, इस्लाम १५२, १६०, १६२, १६३, १७६, १७७, १९७, २०५, २०७, २१२, हिन्दू २१४, २१८, २२५ तात्विक-व्यावहारिक १६ दिनकरी १२६ सत्यादि दीक्षा और विद्या का तीर्थ 'वैशाली' ४६ बालदीक्षा ३६, ४१ और धन ६२ उद्देश्य ४१ धर्मकीर्ति ८५, ८९, ९६, १०५, दीघनिकाय १००. १०१, २४६ १०६, ११८, ११९, १२८, १५२, दूषणदूषणाभास २१३, २१४, २१८, १६०, ५६३, १७०, १८८, १६०, १९१, १९३.१६५, १९७, १९९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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