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________________ - पंडित सुखलालजी आये और गुजरात विद्यासभाके श्री. भो० जे० विद्याभवनमें अवैतनिक अध्यापकके रूपमें कार्य शुरू किया । यह कार्य आज भी जारी है और अब तो अहमदाबाद ही में पंडितजीका कायमी मुकाम हो गया है। वैसे देखा जाय तो पंडितजी अब निवृत्त गिने जाते हैं, पर उनका यह निवृत्ति-काल प्रवृत्ति कालसे किसी तरह कम नहीं । विद्याके उपार्जन और वितरणका काय आज ७७ वर्षकी आयुमें भी वे अविरत गतिसे कर रहे हैं, और मानो किसी प्राचीन ऋषि-आश्रमके कुलपति हों इस तरह विद्यार्थियों, अध्यापकों और विद्वानोंको उनका अमूल्य मार्गदर्शन सुलभ हो रहा है । अपने निकट आनेवाले व्यक्तिको कुछ-न-कुछ देकर मानवताके ऋणसे मुक्त होनेकी पंडितजी सदा चिंता करते रहते हैं। हाल ही में ( ता० १६-२-५७ के दिन ) गुजरातके नवयुवक भूदान कार्यकर्ता श्री. सूर्यकांत परीखको पत्र लिखते हुए आचार्य विनोबा भावेने पंडितजीके बारे में सत्य ही लिखा है "पंडित सुखलालजीको आपको विचार-शोधनमें मदद मिलती है, यह जानकर मुझे खुशी हुई। मदद देनेको तो वे बैठे ही हैं । मदद लेनेवाला कोई मिल जाता है तो उसीका अभिनंदन करना चाहिये।" विद्वत्ताका बहुमान गत दस वर्षों में पंडितजीकी विद्वत्ताका निम्नलिखित ढंगसे बहुमान हुआ है सन् १९४७ में जैन साहित्यकी उल्लेखनीय सेवा करनेके उपलक्ष्यमें भावनगरकी श्री. यशोविजय जैन ग्रंथमालाकी ओरसे श्री. विजयधर्मसूरि जैन साहित्य सुवर्ण-चंद्रक (प्रथम) अर्पित किया गया। — सन् १९५१ में आप ऑल इण्डिया ओरिएण्टल कान्फरन्सके १६वें लखनऊ अधिवेशनके जैन और प्राकृत विभागके अध्यक्ष बने । सन् १९५५ में अहमदाबाद में गुजरात विद्यासभा द्वारा आयोजित श्री. पोपटलाल हेमचंद्र अध्यात्म व्याख्यानमालामें 'अध्यात्मविचारणा' संबंधी तीन व्याख्यान दिये। सन् १९५६ में वर्धाकी राष्ट्रभाषा प्रचार समितिकी ओर से दार्शनिक एवं आध्यात्मिक ग्रंथोंकी हिन्दीमें रचना कर हिन्दी भाषाकी सेवा करनेके उपलक्ष्यमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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