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________________ २४६ है । ही माता' है । साधु जीवन की दैनिक और रात्रिक चर्यां में तीसरे प्रहर के सिवाय अन्य तीनों प्रहरों में मुख्यतया स्वाध्याय और ध्यान करने को ही कहा गया है । यह बात भूलनी न चाहिए कि जैन आगमों में योगार्थ में प्रधानतया ध्यान शब्द प्रयुक्त है । ध्यान के लक्षण, भेद, प्रभेद, आलम्बन आदिका विस्तृत वर्णन अनेक जैन आगमों में श्रागम के बाद नियुक्ति का ४ नम्बर है । उसमें भी श्रागमगत ध्यान का स्पष्टीकरण है । वाचक उमास्वाति कृत तत्त्वार्थ सूत्र में भी ध्यान का वर्णन है, पर उसमें आगम और पेक्षा कोई अधिक बात नहीं है । जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का श्रागमादि उक्त ग्रन्थों में वणित ध्यान का स्पष्टीकरण मात्र है, योगविषक जैन विचारो में आगमोक्त वर्णन की शैली ही प्रधान इस शैली को श्रीमान् हरिभद्र सूरि ने एकदम बदलकर तत्कालीन लोकरूचि के अनुसार नवीन परिभाषा देकर और वर्णन शैली कर जैन योगसाहित्य में नया युग उपस्थित किया । इसके बनाये हुए योगबिन्दु, योगदृष्टि समुच्चय, योगविंशिका, योगशतक ये ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । इन ग्रन्थों में उन्होंने सिर्फ जैन-मार्गानुसार योग का वर्णन नियुक्ति की ध्यानशतक यहां तक के रही है । पर परिस्थिति व पूर्वसी बनासबूत में उनके और षोडशक १ देखो उत्तराध्ययन ० २४ । २ दिवसस चउरो भाए, कुज्जा भिक्खु विश्रक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा, दिभागेसु चउसु वि ॥ ११ ॥ पढमं पोरिसि सभायं बिइत्रं भागं भिनायइ । तार गोचरकालं, पुणो चउत्थिए सज्झायं ॥ १२ ॥ रत्तिं पि चउरो भाए भिक्खु कुज्जा विश्रक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा राई भागेसु चउसु वि ॥ १७ ॥ पढमं पोरिसि सभायं बिइ भाणं भिनाय । तए निद्दमोक्खं तु चउत्थिए भुज्जो वि सभायं ।। १८ ।। उत्तराध्ययन ० २६ । ३ देखो स्थानाङ्ग श्र० ४ उद्देश्य १ । समवायाङ्ग स० ४ । शतक - २५, उद्ददेश्य ७ । उत्तराध्ययन ० ३०, श्लोक ३५ । ४ देखो श्रावश्यक निर्युक्ति कायोत्सर्ग अध्ययन गा० १४६२ - १४८६ | ५ देखो ० १ सू० २७ से आगे । ६ देखो हारिभद्रीय श्रावश्यक वृत्ति प्रतिक्रमणाध्ययन पृ० ५८१ । ७ यह ग्रन्थ जैन ग्रन्थावलि में उल्लिखित है पृ० ११३ । Jain Education International भगवती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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