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________________ २१६ ग्रन्थ में आनेवाले दूषणाभास का निर्देश जैन ग्रन्थों में खण्डनीय रूप से भी कहीं देखा नहीं जाता । • हेमचन्द्र ने दो सूत्रों में क्रम से जो दूषण और दूषण भास का लक्ष‍ रचा है उसका अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा न्यायप्रवेश ( पृ० ८ ) की शब्दरचना के साथ अधिक सादृश्य है । परन्तु उन्होंने सूत्र की व्याख्या में जो जात्युत्तर शब्द का प्रदर्शन किया है वह न्यायबिन्दु ( ३. १४० ) की धर्मोत्तरीय व्याख्या से शब्दशः मिलता है | हेमचन्द्र ने दूषणाभासरूप से चौबीस तीन छलों का जो बर्णन किया है वह अक्षरशः जयन्त की १६- २१ ) का अवतरण मात्र है । I श्रा० हेमचन्द्र ने छल को भी जाति की तरह सदुत्तर होने के कारण जात्युत्तर ही माना है । जाति हो या छल सबका प्रतिसमाधान सच्चे उत्तर से ही करने को कहा है, परन्तु प्रत्येक जाति का अलग-अलग उत्तर जैसा अक्षपाद ने स्वयं दिया है, वैसा उन्होंने नहीं दिया - प्र० मी० २.१.२८, २६ । कुछ ग्रन्थों के आधार पर जातिविषयग एक कोष्ठक नीचे दिया जाता है न्यायसूत्र । साधर्म्यसम वैधर्म्यसम उत्कर्षक अपकर्षसम वर्ण्यसम वर्ण्यसम विकल्पसम साध्यसम प्राप्तिसम प्राप्तिसम प्रसङ्गसम प्रतिदृष्टान्तसम अनुत्पत्तिसम संशयसम Jain Education International वादविधि, प्रमाणसमुच्चय, न्यायमुख, तर्कशास्त्र | "" ... ... " ... ====== "3 जातियों का तथा न्यायकलिका ( पृ० For Private & Personal Use Only उपायहृदय । ," "" "" "" ... ... ... = = = = ... "" www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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