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वाली नियुक्ति में निर्दिष्ट व वर्णित दश अवयवों का, जो वात्स्यायन कथित दश अवयवों से भिन्न हैं, उल्लेख तक नहीं किया है, जब कि सभी श्वेताम्बर तार्किकों ( स्याद्वादर० पृ० ५५६) ने उत्कृष्टवाद कथा में अधिकारी विशेषके वास्ते पाँच अवयवों से आगे बढ़कर नियुक्तिगत दस अवयवों के प्रयोग का भी नियुक्ति के ही अनुसार वर्णन किया है । जान पड़ता है इस तफावत का कारण दिगम्बर परम्परा के द्वारा श्रागम आदि प्राचीन साहित्यका त्यक्त होमा-यही है ।
एक बात माणिक्यनन्दीने अपने सूत्रमें कही है वह मार्के की जान पड़ती है। सो यह है कि दो और पाँच अवयवोंका प्रयोगभेद प्रदेशकी अपेक्षा से समझना चाहिए अर्थात् वादप्रदेशमें तो दो अवयवोंका प्रयोग नियत है पर शास्त्रप्रदेशमें अधिकारीके अनुसार दो या पाँच अवयवोंका प्रयोग वैकल्पिक है । वादिदेवकी एक खास बात भी स्मरणमें रखने योग्य है । वह यह कि जैसा बौद्ध विशिष्ट विद्वानोंके वास्ते हेतु मात्रका प्रयोग मानते हैं वैसे ही वादिदेव भौ विद्वान् अधिकारीके वास्ते एक हेतुमात्रका प्रयोग भी मान लेते हैं। ऐसा स्पष्ट स्वीकार श्रा० हेमचन्द्र ने नहीं किया है |
ई० १६३६]
[ प्रमाण मीसांसा
१ 'ते उ पइन्नविभत्ती हेउविभत्ती विवक्खपडिसेहो दिहतो थासङ्का तप्पडिसेहो निगमणं च ।'–दश० नि० गा० १३७ ।
२ 'दशावयवानेके नैयायिका वाक्ये सञ्चक्षते-जिज्ञासा संशयः शक्य. प्राप्तिः प्रयोजनं संशयव्युदास इति-न्यायभा० १. १. ३२ ।
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