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________________ ६१ सच्चे अर्थ में उसके साथ कई बातें अनिवार्य रूपसे जुड़ी हुईं हैं जिनके बिना नवभारतका निर्माण संभव नहीं । जमींदार जमीनका दान करे, धनवान् संपत्ति का दान करे । पर इसके सिवा भी श्रात्मशुद्धि श्रनेक रूपसे श्रावश्यक है । आज चारों ओर शिकायत रिश्वतखोरीकी है । बिहारके राजतंत्रवाहक इस क्षतिको निर्मूल करेंगे तो वह कार्य विशेष आशीर्वादरूप सिद्ध होगा । और देश के अन्य भागों में बिहार की यह पहल अनुकरणीय बनेगी । ऊपर जो कुछ कहा गया है वह सब महाबीर, बुद्ध, गांधीजी वगैरहकी सम्मिलित अहिंसाभावना से फलित होने वाला ही विचार है जो हर जन्मजयन्ती पर उपयुक्त है । [ वैशाली - संघ द्वारा आयोजित भ० महावीर जयन्तीके अवसरपर अध्यक्ष पद से दिया गया व्याख्यान – ई० १६५३ । ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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