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________________ भूमिका पंचाख्यान-बाला० १६ मी शताब्दी यशोधर सांडेसरा अने पारेख संपादित (१९६३) (पहेलु तन्त्र) षडावश्यक-वाला० १३५५ तरुणप्रभ प्र.बे. पण्डित संपादित (१९७६) 'शीलोपदेशमाला' पर पंदरमी शताब्दीथी लईने सत्तरमी शताब्दी सुधीमां पांच-छ बालाबबोधो रचाया छे. मेरुसुन्दर उपाध्यायनो प्रस्तुत बालाबोध मुख्यत्वे तो रुद्रपल्लीय गच्छना संघतिलकसूरिना शिष्य सोमतिलकसुरिए चौदमी शताब्दीना मध्य लगभग रचेली 'शीलतरंगिणी' टीकानो मुक्त अनुवाद छे. शोलोपदेशमाला-बालाबबोधनी भाषाकीय लाक्षणिकताओ शी. बा. नो भाषा उपर थोडेक अंशे प्राकृतनो (मूळग्रंथनी भाषा) अने संस्कृतनो (आधारभूत टीकानी भाषा) प्रभाव छे. संस्कृत प्रभावना द्योतक अनेक शब्दोमा विशेषे नीयेना जेवा तत्सम के तत्समप्राय) क्रियापदोनो समावेश थाय छे. प्रसद, अपहर्, विसर्जु , नमस्कर् , आश्रय् , उन्मूल् , उपशम् , अवगाह, अभ्यस्, संतोष , व्यामोह, आलोच, आच्छाद्, प्रतिबोधू, अवगण, प्रयुज् , पडिलाभू , आव , विराध् , ध्या, कलं, क्षाभ् . वळी रसवती, अधिष्टायका वगेरे संख्याबंध शब्दो पण आ प्रभावना द्योतक छे. प्राकृत प्रभावना द्योतक केटलाक शब्दोः धातु-संपज् , पडिवज् , अहिआस् , आलोय, प्रतिबूझ, पच्चक्ख, उपाय, भख, वक्खाण्, अन्य शब्दों: आकुट्टी, तहात्त, कलाबइ (तेम ज कलावती). केटलाक फारसोमांथी स्वोकृत शब्दोनो वपराश पण नोंघपात्र छे : कागल, कारखानउँ (५२), खरच, बगल, बंदोवाण, बंदोखाणउं, मजूद. अवारनवार मेरुसुन्दरे लोकप्रचलित कहेवतोनो उपयोग पण कर्यो छे. पण समग्रपणे लेतां. शी.मा.बा.ना गद्यने तत्कालीन कथाकथनना गुजराती गद्यन प्रतिनिधिरूप गणी शकाय. शैली एक तरफथो आलकारिकता अने प्रस्तारने टाळे छे, तो बीजी तरफथी ते केवळ मुद्दानोंध के कोरी रूपरेखा बनवाथी बचे छे अने वर्णन, भावनिरूपण, संवाद वगेरेनो पण मापमां आश्रय ले छे. बेत्रण स्थळे ता प्रासबद्ध ढूंका वर्णकोनो पण उपयोग कर्यो छे, जेम के पा. ६८ (वर्षाकाळनुं वर्णन), पा. ७८ (युद्धवर्णन), पा. ९८ (योगिनीवर्णन), पा. १३२ (विरहिणीवर्णन) मेरुसुन्दरगणि उपाध्याय होवा छतां पांडित्यनो प्रभाव 'जितकासी' जेवा थोडाक शब्दप्रयोगो पूरतो ज पड्यो छे. शी. बा.नी भाषाविषयक नोचेनी नोंधनो उद्देश व्याकरणदृष्टिए थोडीक विशिष्टताओ टपकाववानो छे, व्यापक प्रयास माटे तो वधु व्यवस्थित रीते अने मेरुसुन्दरना बोजा बालावबोधोने पण आवरी लईने सामग्री तारववी आवश्यक छे. वळो साहित्यिक दृष्टिए आ गद्यनो विचार करवान अहीं सहेज पण बन्यु नथी. ____. ध्वनितत्त्व (१) क्वचित् इ नो अः वरिस अने वरस, परिणू अने परण, पडिल अने पडखू , थिकउ अने थकउ, बहिनि अने बहिनि, जि अने ज, अधिकरणना .इई अने अड, सामान्य कृदंतना इवउ अने ०अवउ; धातुस्वर अ के ओ पछी ०इवर नो इ कोई वार लुस थयो छे: जोइवा, थाइवा तेम ज रोवा, थावा, जावा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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