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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
१५९ अम्हे कमलसेनानइ लेई बीजी वाटइ चाल्या । तु सांप्रत हिवडां तुम्हे मिल्या ।' इम वात करतां पंथ अवगाहतां संखपुरिनइ उद्यानि वनि आन्या । पछइ पिताई कुमार प्रवेशोत्सव करी नगरी-माहि आणिउ । तिसिइं वधू-सहित कुपर मातापिता पग नमस्करी भापणइ घरि आविउ । पछइ भलइ दिवसि कुमारनइ युवराज पदवी दोधी । अनइ कुमारिइ ते मदनमंजरी पट्टराणी कीधी । अनइ कमलसेना लहुडी राणी कोधी । हिवइ. सर्व काजकामनइ धुरि मदनमजरी कीधी । पणि लगारइ कमलसेना रीसाणी नहीं ।
हिव अन्यदा वसंतऋतु आविई राजा सांत:पुर वन-माहि गयउ । तिसिई अगडदत्तकुमार पणि मदनमंजरी-सहित रथि बइसी वन-माहि गयउ । तिहां सर्व दिन क्रीडा करी, तीणइ जि रथि निद्रा करिवा लागा। एहवइ निद्रा-माहि मदनमंजरीनउ हाथ लांबउ हूउ, तिहां सर्पिइ आवी डंक' कीधउ । तेतलइ तत्काल मदनमंजरी पुकारी ऊठी । तिसिई कुमार दीवउ करी जु जोइ, तु साप दीठउ । एतलइ प्रियानइ मूर्छा आवी । ते देखी कुमारनइ पणि मूर्छा आवी । पछइ शीतल वायनह योगह कमार सचेत हउ। हिवह जेतलई मंत्रवादी-तंत्रवादी तेडावीनइ उपचार करावइ, तेतलइ राणी अचेत हुई मुंई पडो। तिवारइं कुमार विलाप करतउ काष्टनी चिहि करावी प्रिया-सहित चिहि-माहि पइसिवा लागउ । तिसिई कोई एक विद्याधर आकाश-मार्गि जातउ हूंतउ। तेणइ ते कोलाहल सांभली तिहां आविउ । पछइ विद्याधरइ विद्याइ करी त्रिण्णि वार पाणी अभिमंत्री मदनमंजरी छांटी । तेतलह तत्काल विष गयउं, आंखि ऊघाडी जोवा लागी। तिवारह कुमारनइ मनि आनंद ऊपन। पछइ विद्याधर सत्कारिउ हूंतउ आपणइ ठामि पहुतउ । अनई कुमार मदनमंजरीनइ लेई देवकुल-माहि आविउ । तिसिइ मदनमंजरी कहइ, 'स्वामी! मुझनइ ताढी लागइ छ। ए वात सांभली कुमार अरणीना काष्ट लेवा गयउ।
हिवइ ते देवकुल-माहि आगइ पांच चोर चोरी करी प्रच्छन्न रह्या हता, तीणइ दीवउ प्रगट कीघउ तिवारइ ते चोरनू रूप देखी मदनमंजरी व्यामोहि हूती इसिउँ कहइ, 'जु मुझनइ आदरउ तु @ भरिनइ हगी तुम्ह-साथि आवउं ।' चोरे ए वचन मानिउं । एहवइ कुमारिइं अरणी-काष्ट लेतां. देवकुल-माहि उद्योत दीठउ । ते देखी सासक हूंतउ पाछउ आवी प्रियानइ पूछइ, 'हे प्रिये ! ए देवकुल-माहि उद्योत किसिउं हूउ ?' तिवारइ स्त्री कहइ 'स्वामी ! तुम्हे जे अरणीनी आगि पाडी तेहनउ उद्योत इहां प्रतिबिंबिउ ।' इणि वचनि मननी शंका भागी। पछइ आपण खड़ग प्रियानइ हाथि देई, सीत गमाडिवा-भणी आपणपे आगि प्रगट करिवा लागउ । तिसिद्ध प्रयाइ भर्तार-भणी खड्ग मूकिउ, पणि लागउं नही, भीतिइं खलहाणउं । पछइ कुमार सासंक हतउ प्रियानइ पूछइ, हे प्रिये ! ए सिउं?' तिवारई स्त्री कहइ, 'माहरा हाथ ताब्या, तिणि करी खांडउं खिसी भुई पडिउं ।' पछइ कुमारनइ मनि वेसास ऊपनउ । तिहां-थकउ प्रिया-सहित कुमार घरि आविउ । हिवह पाछलि चोरे चौतविउं, 'जोउ, जेहनइ कीधइ कुमार काष्ट-भक्षण करतउ हूंतउ, तेहनइ जु आपणी नही हुई, तु अम्हनइ किम हुसिह ?' इम चीतवतां वैराग्य-रंग ऊपनइं पांचे चोरे दीक्षा लीधी ।।
हिव कुमार धर्म-अर्थ-काम ए त्रिवर्ग साधतउ रहइ छइ । इसिइ परदेसी तुरंगम आव्या। जेतलइ एकइ घोडइ कुमार असवार हूउ, तेतलइ ते तुरंगम पंवमधाराइ चालिवा लागउ । एहवइ केंतलाएक असवार पाछा वल्या केतलाएक संघाति नीकल्या । इम जातां जि क्षण-एक कमार अदृश्य हउ । महा-अटवी-माहि गयउ। तिहां जेतलइ कुमारि घोडानी वाग मंकी.
१. G. Pu. डस, K. डंश । २. P ठर्या ।
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