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भूमिका
यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ||१||
तैलाद्रक्षं (क्षेत्) जलाद्रक्षं (क्षेत्) रक्षेत् सिथ (शिथिल - बन्धनात् ।
मूर्ख हस्ते न दातव्यं एवं वदति पुस्तके (कं) ॥२॥
ग्रं. ६००० । तदुपरि श्लोक पञ्चशतानि ५०० । तदुपरि श्लोक द्वाविंशति २२
॥ श्री ॥ श्री ॥ छ ॥
Pu. श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना मुनिराज श्री पुण्यविजयजी हस्तप्रत-संग्रहनी कागळ्नी प्रति, नं ३८०४
पत्र २ थी १२६ (प्रथम पत्र खूटे छे.)
भाप - १० X ४.२ (२५.५ ×१०.५ से. मी. )
प्रतिपृष्ठ पंक्ति १६, प्रतिपंक्ति अक्षर- ५० लगभग.
स्थिति:- मध्यम लेखन समय:- वि. सं. १५६८.
आदि-पत्र १ लुं नथी.
११
अंत - इति श्री शीलोपदेशमाला-प्रकरण - बालावबोध समाप्तः । संवत १५६८ वर्षे चैत्र वदि नवम्यां तिथो भृगु-वासरे लिख्य (खि) तं || शुभं भवतु || श्री श्री बृहद्गच्छे पूज्य श्री श्री श्री श्री श्री मतिसुन्द [र] सूरि तरपट्टे श्री श्री श्री श्री श्री पद्मासागर सूरि...... शुभं भवतु || श्री श्री ॥ मडाहडीय गच्छे भट्टारिक श्री मतिसुन्दरसूरि श ( शै) क्ष मुनि मही सुन्दर पठनार्थं ॥ श्रीरस्तु || देवी (व्यै नमः ॥ उपरनी छये प्रतोमां एक मात्र K. पाछळनी (सं. १६७२) केटलांक नोधवालायक परिवर्तनो थयां छे. ज्यारे बाकीनी बीजी पांचे निकटनी होई पाठनी बाबतमां लगभग एकरूप छे अने तेथी ज लहियाओनी बेदरकारीने कारणे अत्रतत्र भाषाविषयक भूलो नजरे चडे बालावबोधनी विशिष्ट शैलीने ध्यानमा राखीने प्रस्तुत संपादनमां अमे नीचेना नियमोने अनुसर्या छीए :
छे.
( १ ) मूळ प्राकृत गाथाओ घाटा टाइपमां मूको छे अने तेना संख्यांक सळंग ( १ थी११४) आप्या छे. ग्रंथना अंते आ मूळ गाथाओनी पण अकारादि सूची आपी छे. मूळ गाथाओनी शुद्धि माटे बालाववोधनी ज प्रतो पर आधार नहीं राखतां मूळमात्रनी अनेक प्रतो जोईने पाठशुद्धि करेल छे.
(२) मूळगाथा पछी 'व्याख्या' एवा शीर्षक नीचे गुज० बालावबोध आपेल छे.बालावबोधमां आतां प्राकृत- संस्कृत उद्धरणाने सादा टाइपमां मूक्यां छे अने नंबर आप्या नथी. तेनी अकारादि सूची ग्रंथांते आपी छे. बालावबोधमांना दृष्टांतो अने कथाओने ( १ थी ४२) क्रमांक ओपी ते दरेकनी शरूमां चोरस कोष्ठकमां शीर्षक आपी अने अंते फूदडी मूकी जुदा तारवी आपेल छे. (३) बालावबोधना सळंग गद्यने परिच्छेद पाडी जरूरी विरामचिह्नो मूकवा उपरांत शब्दार्थ- समजूती खातर लेखके आपेल पर्यायाने बराबर ( = ) ना चिह्नथो दर्शाव्या छे. वळी परप्रत्ययो स्पष्ट करवा शब्द अने प्रत्ययनी वच्चे हाईफन (-) मूकी छे. उदा. -भणी, - माहि, - लगी, पाहि
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छे अने तेना पाठमां प्रतो लेखकना समयनी प्रमाणभूत पण छे. मात्र
(४) अशुद्ध शब्दादिनु शुद्ध रूप गोळ कोष्ठमां ( ) अने अमे उमेरेला शब्दादि चोरस [ ] कोष्ठमां मूक्या छे. संदिग्ध शब्दादि पछी (१) प्रश्नार्थ मूकेल छे.
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