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भूमिका
अने निर्णय माटे अमे ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमांना विविध हस्तप्रत-संग्रहोमां रहेल शीलो० बाला० नी अनेक प्रतोमांथी प्राचीनता अने शुद्धिनी दृष्टिए महत्त्वपूर्ण जणाती K अने Pu प्रतो पसंद करो. तदुपरांत पाछळथी मळी आवेल, B ना जेवी न, बीजी एक C संज्ञक प्रतनो उपयोग कर्यो छे.
आ रीते B उपरथी ने घायल पाठने C, K, L, P अने Pu प्रतोना आधारे शुद्ध करेल छे. B अने P प्रतोनो परिचय ते ते प्रतना संग्रहना छपायेल सूचिपत्र परथी अहीं आपेल छे.
B घी बोम्बे ब्रान्च ओफ घी रोयल एशियाटीक सोसायटी, मुंबईना हस्तप्रत-संग्रहनी कागळनी हस्तप्रत, नं. १६६४१. माप - १०” × ४.५” (२५.५ x ११.५ से. मी.)
पत्र - १६४, प्रतिपृष्ठ लगभग १३ पंक्ति, छेल्लं पत्र (१६५) खूटे छे. लेखनकाळ - अनुमाने विक्रमनी सोळमी शताब्दीनो अंतभाग. आदि :- ॥ ६० || श्री वीतरागाय नमः ॥ श्री नामेयममेयश्री सुरैश्व सहितैर्हितैः । प्रणिपत्य सत्यभक्त्या
अंत :- श्रीखरतर गच्छे बहु-गण-यति-संयुते धरा-विदिते । षट्त्रिंशत् - गुण - सहिता श्रीमज्जिनभद्रसूरयोऽभवन् ॥ तत्पट्टाचल-शृङ्गार-हार - नायक - सन्निभाः । श्रीजिनचन्द्रसूरीन्द्राः जयन्ति सपरिच्छदाः ॥ तेषां गुरूणामादेशाः (शं) प्राप्य श्रीजयमन्दिरं । श्री मद्रत्नमूर्ति-गणि-वाचनाचार्य सेवकः ॥ गुरु-भक्ति-परो नित्यं मेरुसुन्दर आदरात् ।
प्रतनुं छेल्लं पत्र न होवाथी प्रशस्ति अधूरी मळे छे.
C. श्री ला द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना शेठ श्री भाणंदजी कल्याणजो संग्रहनी कागळनी प्रति, नं० १२६२१. पत्र - १७६, माप- १०.५” X ४५” ( २६ x ११.५ से. मी.) प्रति पृष्ठ पंक्ति १३, प्रतिपंक्ति अक्षर ५० लगभग स्थितिसारी, शुद्धप्राय. लेखन - समय: विकमनी सोळमी सदी अनुमाने.
आदि - ||६० || नमो वीतरागाय ।
॥ श्री वामेयममेय......
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अंत
आ प्रतनो उपयोग २९ मी ऋषिदत्तानी कथा (पृ. ९६ ) थी करेल छे.
प्रशस्ति विना ज, अपूर्ण.
१. जुओ- A Descriptive Catalogue of Sans and Pkt. Mss.
in the Library of the Bombay Branch of the
Royal Asiatic Society, Vols. III-IV, Compl. by H. D. Velankar, Bombay 1930, p. 426.
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