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________________ १३ वेला छे. घणे स्थाने एवा अंको रही गएला त्यां संपादक पासे पण्डितजीए वापरेल धातुपारायणनुं पुस्तक न होवाथी मुनिराज श्रीदक्षविजयजी (श्री विजयलावण्यसूरिना शिष्य ) ए संपादन करेल धातुपारायणनो उपयोग करेल छे.:. आ धातुपारायणमां धातुओना सळंग अंको नथी आप्या पण गणवार जुदा जुदा अंको आपेला छे एटले ज्यां आ धातुपारायणने अनुसरीने अंको आपेला छे त्यां जरूरत प्रमाणे स्पष्टता माटे गण साथे धातुना अंको जणावेला छे. ३ - शतार्थीनुं परिमाण शतार्थीनुं परिमाण १६९७ अनुष्टुप श्लोको जेटलुं छे ते वात 'ग्रन्थाग्रम् १६९७' एम करीने प्रतमां ज सूचवेल छे. ४ - कर्तानो परिचय शतार्थीना कर्तानुं नाम श्री जिनमाणिक्य छे. तेमना गुरुनुं नाम चारित्ररत्न छे. शतार्थीना वृत्तिकार जिनमाणिक्यना शिष्य विजयमुनिए तेमनी परिचयात्मक वंशावलीसूचक प्रशस्ति १६ श्लोकोमां आपेल छे. प्रशस्ति स्पष्टार्थ छे एटले ए अंगे विशेष विवेचन करवानी जरूर नथी. प्रशस्तिना प्रारम्भमां चन्द्रगच्छनो उल्लेख करेल छे अने आदिमां सोमसुन्दरसूरिनुं नाम जणावेल छे. प्रशस्ति रचनारे श्रीचारित्ररत्न अने जिनमाणिक्यने अनुक्रमे वाचकाधीश तथा वाचकेन्द्र एवां विशेषणो आपेलां छे. ग्रन्थनी समाप्तिमां ग्रन्थकारे जे पुष्पिका आपेल छे ते आ छे: ॥ इति श्री ४ श्री सोमसुन्दरतत्पट्टप्रभाकर श्रीजय चन्द्रसूरि-वाचकचक्र चक्रवर्तिचारित्ररत्नगणिशिष्य श्रीजिनमाणिक्यगणिविरचिता शतार्थी जीयात् ॥ आ पुष्पिका जोतां शतार्थीकारना गुरुनुं नाम चारित्ररत्न बाचकचक्रवर्ती छे. प्रशस्तिकार विजयमुनिए लखेल छे के निधि-गुण- तिथि ( १५३९) मितवर्षे हर्षेण विनिर्मिता प्रशस्तिरियम् । जिनमाणिक्यगुरूणां शिष्यभुजिष्येण विजयेन || प्रस्तुत श्लोकमां प्रशस्तिना निर्माणनो समय वि० १५३९ साल जणावेल छे एथी शतार्थीकार जिनमाणिक्यनो पण लगभग आ समय ज होई शके. ग्रन्थकारने आ शतार्थीनुं निर्माण करतां कदाच एक वर्ष लाग्युं होय तो रचना समय वि० १५३८ होय पण सोळमो सैको तो निश्चित ज कहेवाय, प्रस्तुत ग्रन्थकारे आ सिवाय बीजा पण कोई काव्यग्रन्थो वा बीजा ग्रन्थो रच्या नहीं होय एम नहि कही शकाय. ते अंगे स्पष्ट माहिती न होवाथी अहीं विशेष लखी शकाय एम नथी Jain Education International (सोळमो श्लोक - प्रशस्ति) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002652
Book TitleRatna karavatarikadya sloka satarthi
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1967
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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