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________________ टीकाकार श्रीवल्लभ की गुरुपरम्परा हैमनाममालाशिलोच्छ के टीकाकार वादी श्री श्रीवल्लभोपाध्याय खरतरगच्छीय श्री ज्ञानविमलोपाध्याय के शिष्य हैं । श्रीवल्लभ, महोपाध्याय श्री जयसागरजी की उपाध्याय परम्परा में आते हैं । जयसागरोपाध्याय की परम्परा बहुत ही उच्च कोटि के विद्वानों तथा गीतार्थों से अलंकृत रही है । यही कारण है कि श्रीवल्लभ ने अपने समस्त ग्रन्थों की प्रान्तपुष्पिकाओं में 'महोपाध्याय श्रीजय सागरसन्तानीय' एवं प्रशस्तियों में इस परम्परा वर्णन किया है' । का विशदता से शिलोञ्छदीपिका, अभिधानचिन्तामणिनाममालाटीका आदि प्रशस्तियों के आधार पर इनकी गुरु-परम्परा का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है: रत्नचन्द्रोपाध्याय भक्तिला भोपाध्याय T T चारित्रसारोपाध्याय T भानुमेरु उपाध्याय T ज्ञानविमलोपाध्याय 1 मेघराज Jain Education International ३ भावसागरगणि जीवकलश जिनराजसूरि 1 जयसाग रोपाध्याय तेजोरंग गणि कुञ्ज चारुचन्द्रवाचक कनक कलश श्रीवल्लभोपाध्याय ज्ञानसुन्दर जयवल्लभ १ इनके लिए देखे 'निघण्टुशेष का 'क' पुष्पिका, शेपसंग्रहदीपिका प्रशस्ति आदि । २ मेघराजरचित हारबन्धम' नगर को स्टालङ्कार आदि जिनस्तोत्र ( जगज्जीवनं पावनं यस्य वाक्यम्) पद्य ५४ प्राप्त है । ३ सोमकुञ्जर ने जेसलमेरस्थ सम्भवजिनालय की प्रशस्ति का सं. १४९७ में निर्माण किया था और सं. १४८५ में जिनभद्र पूरि के उपदेश से लिखापित आचाराङ्गवृत्ति का स. १४५२ में शोधन किया था । ४. विज्ञप्तित्रिवेणी के अनुसार जयनगरजी के प्रमुख शिष्यों में उनके भी नाम प्राप्त हैं -- स्थिरसंयम, मतिशीलगणि, हेमकुवर, समयकुञ्जर, कुलकेशरी, अजितकेसरी आदि । सत्यरुचि आदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002650
Book TitleHaimanamamalasiloncha
Original Sutra AuthorJindevsuri
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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