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________________ ॥ णमो त्थु णं समणस्त भगवओ महावीरस्स ॥ सिरि-धम्मसेण-गणि-महत्तर-विरइया वसुदेव-हिंडी मज्झिमं* खंड [ पढमो पभावइ-लंभो] ॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ जयत्यनेकान्तकण्ठीरवः ॥ ॥ अथेदमारभ्यते द्वितीयखण्डम् ॥ जयइ नव-नलिणि-कुवलय-वियप्तिय-वर-कमल-पत्त-लडहच्छो । उसभो सभाव-सुललिय मयगल-गइ-ललिय-पत्थाणो ॥१॥ जयइ य पणय-पुरंदर-णह-प्पहा-हसित-भूसण-च्छाओ। वीरो समत्त-तिहुयण-लोयण-कमलागराइच्चो ॥२॥ तत्तो य पणय-सुरवइ-म उड-तडाघट्ठ-ललिय-कम-जुयला । अजियाइ-पास-चरिमा सेसा वि जयंति जिणचंदा ॥३॥ तव-सिद्धि-बुद्धि मंगल-जय-सिव-सुपसत्थ-सिद्ध-कल्लाणा । जइणो जयंति लोए निच्च पि हु सुह-फला सिद्धा ॥४॥ नमिऊण त विणएणं संघ-महारयण-मंदरगिरिस्स । वोच्छामि सुणह निहुया खंडं वसुदेवचरियस्स ॥५॥ तं सुणह भैद्दवो ! जयउ जिण-सासणं, साहु-जण-सम्मयाणि य मंगलाणि वो उतणमंतु । सुणह कहा-करण-कारणं च - सोऊण लोइयाणऽणेग * यद्यपि खण्डस्यास्य प्रान्ते “वसुदेवहिंडीए मज्झिमकंडं समत्तं" इत्येवं "खंड". स्थाने कंडं दृश्यते तथापि द्वितीयादिलम्भक प्रमाप्तिसूचिकासु " इति वसुदेवहिंडीए मज्झिमखंडे अट्ठकण्णगालंभो नाम बीओ समत्तो" "इति मज्झिमखंडे ततिओ लंभो पण दसमा मेहमालालंभओ समत्तो" "इति मज्झिमखंडे चउत्थो आलावो बावीसंभओ नाम समत्तो" इत्यादिकासु पुष्पिकासु"खंड" पदमीक्ष्यते, तथा ग्रन्थकृता स्वयमपि मालोपोद्धातग्रन्थे पन्चमगाथायाम् "वोच्छामि सुणह निहुया, खंडं वसुदेवचरियस्स" इत्येवं "खंड". पदमेव मिरटकि इत्यस्माभिरप्ययं खण्ड: "मज्झिमखंडं" इति पदेनैवोपलक्षितः ॥... १. पत्तलदलच्छो ख० ॥ २. सललिय ख० ॥३. पि सुह खं० ॥४. भदं वो वा० ॥ ५. उततण० ख०विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002648
Book TitleVasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages422
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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