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वसुदेवहिंडी-मज्झिमखंडे
याणदेसूण (१)-कोसमसित-विइत्त-सोभा-भासित-तेलोक्क-मंडलो, जोयण-सहस्समहिमोगाढ-वर-वहरमयाधो-भो(१ भा)ग-विग्गहो, णवणउति-जोयण-सहस्सू-सितैसिहरो, चत्तालीसायग(?)-सिद्धायतण-चूलो, हेट्ठा दस-जोयण-सहस्स-वित्थारधारी, एक्कतीस-जोयण-सहस्साइं छच्च तेवीसे(१) जोयण-सए परिरएणं कमसो य विक्खंभ-परिर(१ णा)हो त्ति परिच्छेदमाणो उवरिवरि गोपुच्छ-महिंदद्धयाकारुस्सेधधारी, एग-जोयण-सहस्सं सिहर-तले आयाम-विक्खंमेणं, तिण्णि-जोयण-सहस्से बावट जोयण-सयं एक्कं किंचि विसेसाहियं उवरि-तळे परिक्खेव-धारो, जो य धरणितलोगाढं कंड हेटिम-परिच्छेदे दस-लो(? जो)यण-सहस्साई णउदि च जोयणाई आयामविक्खंमेण, एकत्तीसं जोयण-सहस्साई णव-जोयण-सयाई दसजोयणाई तम्मि(१ तिण्णि) य एक्कारस-भागो जोयण-सहस्स-परिरएणं, पउम-वरवेझ्यामल-विउल-बाहिर-वणसंड-मंडियाभिरामो, दु-मेहला-परिक्खित्तो, विविध-मणिरयण-कणग-संघाय-सोभिदुस्सेध-विग्गहो, सग्ग-(? व्व)सोग-वीसामो, गहिर-गुहा-मुह-सहस्स-वर-विवर-पसरियविमल-सलिल-व(?पोलंबोज्मरम(?)रंत-कंत-फेण-दृहास-णिवहो, जो पहसंतो(? सति) इव दर-विवर-वि(१ व)दण-संवि(! ठि)य- पालिय(१)-मणि-रयण-किरण-परिप्फुरियदसण-पंतीहिं, अवलोगेति व पवर-पविकसित-कमल-विपुलणयणेहिं दिसावधु-मुहाई, जंभा-यदि व कणगेगुहा-मुह-सहस्सेहिं विमल-जल-जीहदोहर-फुरंत-मणि-दंतुरेहि, णीससति व गुहा-मुह-चत्त-सीतल-सुरभि-कुसुम-व(वा) सित-चलित-मारुत-विमुक्कफुकार-करण-णिवहेहिं, गच्चदि [व] पवण-पचलिय-कप्पलया-वियाण-चल-किसलय. Sग्ग-हत्थेहि; गायति व सुरभि-कुसुम-मधु-सहिय मत्त-मधुकर-भमर-णि गुंजंत-बहलकल-विरुय-णिस्सणेहिं, वज्जति व कुहर-रममाण-जलधर-णिणाद-गंभीर-णिस्सणेहिं, गज्जदि व मुइय-दिग्गय-आडंबर-देवदुंदुभि-रवेहिं, पुकारेति व सारस-मयूर-कलहंसकोंच-कोकिल-कादंबुक्कोस-रसितेहिं, सव्व-गुण-समुइयागत-सण्णिहिय-सव्व-रितु-सारो सयल-महियले, स[व]-लोक-णाभि-भूओ, णाभिसुया(? ओ) इव सव्व-णरामराणं महिधराणं परं पमाणं गओ, सद्धिं मुणिगण-देव-दाणव-णिसेविओ, सि[य]-कमल-जालसुरभि-पुक्खरिणि-मंडिओदार-सस्सिरीओ, सक्कोसाण-महासुर-विहार-पवर-पासदे(१साद)विविध-जिण-भवण-संकुलो, सुरभि तोतल-कप्पपायव कुसुम संछण्ण-लच्छिपत्थित-गोसीस-दुमाकुल-णितंबो, पज्जलि उसवि(!हि)-जलंत-मणि-किरण-रंजिय-सिमिसि मिसिमेंत-दिप्पंत-महंद-दस-दिसा-चक्को, एस मंदगे गिरि-वरो त्ति ।
१.०८पदेसण खं० ॥ २. सत खं० विना ॥ ३, जोयण धरणि० खं० विना ॥ ४. परिपालिय खं० विना ॥ ५. मुहाउह सह० ख० विना ॥ ६. निकुजंत खं० ॥
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