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ग्यारहवाँ स्तबक
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(ज्ञानवादियों का कहना है :) मनुष्यों को ज्ञान ही फल दिलाता है, क्रिया फल नहीं दिलाती, क्योंकि हम देखते हैं कि मिथ्या ज्ञान के आधार पर क्रियाशील होने वाले व्यक्ति को फल की प्राप्ति नहीं होती।
ज्ञानहीनाश्च यल्लोके दृश्यन्ते हि महाक्रियाः ।
ताम्यन्तेऽतिचिरं कालं क्लेशायासपरायणाः ॥६७५॥
फिर संसार में देखा जाता है कि जो व्यक्ति ज्ञानहीन है वे भारी भारी काम करने पर भी लम्बे लम्बे समय तक बाह्य तथा आन्तरिक कष्टों से पीड़ित रहा करते हैं।
ज्ञानवन्तश्च तद्वीर्यात् तत्र तत्र स्वकर्मणि । विशिष्टफलयोगेन सुखिनोऽल्पक्रिया अपि ॥६७६॥
दूसरी और, जो व्यक्ति ज्ञानसंपन्न हैं वे थोड़ा परिश्रम करने पर भी अपने ज्ञान के प्रताप से अपने उन उन कामों में विशिष्ट सफलता प्राप्त करते हैं तथा सुख भोगते हैं।
केवलज्ञानभावे च मुक्तिरप्यन्यथा न यत् । क्रियावतोऽपि यत्नेन तस्मात् ज्ञानादसौ मता ॥६७७॥
फिर क्योंकि केवल (अर्थात् सर्वविषयक) ज्ञान की प्राप्ति होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है जबकि केवल ज्ञान के अभाव में यत्नपूर्वक क्रिया करने पर भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती । इसलिए सिद्ध होता है कि मोक्षका कारण ज्ञान है ।
___टिप्पणी-प्रस्तुत वादी जैनों की इस मान्यता को अपने तर्क का आधार बना रहा है कि एक व्यक्ति का मोक्षप्राप्ति से कुछ समय पूर्व सर्वज्ञ हो जाना अनिवार्य है।
क्रियैव फलदा पुंसां न ज्ञानं फलदं मतम् ।
यतः स्त्रीभक्ष्यभोगज्ञो न ज्ञानात् सुखिनो भवेत् ॥६७८॥
(क्रियावादियों का कहना है :) मनुष्यों को क्रिया ही फल दिलाती है, ज्ञान फल नहीं दिलाता, क्योंकि हम देखते हैं कि वह व्यक्ति जिसे इस बात का ज्ञान है कि अमुक स्त्री अथवा अमुक खाद्य पदार्थ का स्वाद कैसा है वह इस ज्ञान भर से सुखी नहीं हो जाता ।
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