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________________ ८८-१०९ कारिकाएँ,* जबकि इसी प्रकार के कुछ छिटफुट-उदाहरण दो-चार अन्य स्थलों पर भी पाए जाते हैं । कहने का आशय यह है कि शास्त्रवार्तासमुच्चय की कारिकाओं के विशाल बहुमत का संबंध सत्ताशास्त्रीय प्रश्नों से है-अधिकांश का सीधे-सीधे तथा कुछ का मोक्ष-स्वरूपविषयक चर्चा के नाते, जबकि ग्रंथ के अवशिष्ट अल्प भाग का संबंध आचारशास्त्रीय प्रश्नों से है । लेकिन शास्त्रवार्तासमुच्चय में सामग्री का संयोजन विषयानुसार न किया जाकर सम्प्रदायानुसार किया गया है और हम कह सकते हैं कि ग्रंथ के विभिन्न स्तबकों में विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों को आलोचनात्मक समीक्षा का लक्ष्य निम्नलिखित प्रकार से बनाया गया है : पहला स्तबक : भौतिकवाद (अर्थात् चार्वाक अथवा लोकायत मत) दूसरा स्तबक : कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद, कर्मवाद तीसरा स्तबक : ईश्वरवाद (अर्थात् न्याय-वैशेषिक मत), प्रकृति पुरुषवाद (अर्थात् सांख्यमत) चौथा स्तबक : क्षणिकवाद (अर्थात् सौत्रान्तिक बौद्ध मत) पाँचवाँ स्तबक : विज्ञानाद्वैतवाद (अर्थात् योगाचार बौद्ध मत) छठा स्तबक : क्षणिकवाद (अर्थात् सौत्रान्तिक बौद्ध मत), शून्यवाद (अर्थात् माध्यमिक बौद्ध मत) सातवाँ स्तबक : नित्यानित्यत्ववाद (अर्थात् जैन मत) आठवाँ स्तबक : ब्रह्माद्वैतवाद (अर्थात् अद्वैत वेदान्त मत) नवाँ स्तबक : दसवाँ स्तबक : सर्वज्ञताप्रतिषेधवाद (अर्थात् मीमांसा मत तथा बौद्ध एकदेशी मत) ग्यारहवाँ स्तबक : शब्दार्थसंबंधप्रतिषेधवाद (अर्थात् सौत्रान्तिक बौद्ध मत) । ★ यह सच है कि इन कारिकाओं में चर्चा--विषय है बंध का स्वरूप, न कि मोक्ष का स्वरूप; लेकिन बंध के स्वरूप की चर्चा मोक्ष के स्वरूप पर सीधा प्रकाश डालती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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