________________
१२५ इय-'दुक्खेंधण-पाल(व)य ! करुणामय-जलहि जय-गुरु जिणिंद! । सासय-निव्वाण-सुहेहिं कुण पसायं पसन्नच्छ! ।।१४१२।। थुणिऊण जि(२०४ब)ण-अरिहंत-सिद्ध-आयरिय तह च उ(व)ज्झाओ। णीसंगे वि य साहू णमेवि भावेणं रायसुया।।१४१३।। दुच्चरियं आलोयइ वाया-मण-काय-गुत्ति-जुत्तीए। काऊण कसाय-जयं इंदिय-इच्छा-णिरोहेण।।१४१४।। तं जहापुढवि-जल-जलण-मारुय-वणसइ काएसु जे मए जीवा। वाया-मण-काएण य विराहिया ते मह खमंतु।।१४१५।। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरो-पंचिंदिया तसा जीवा। वाया-मण-काएण य विराहिया ते मह खमंतु।।१४१६ ।। नर-नरय-तिरिय-देवे(२०५अ)सु जे मए तह विराहिया जीवा। वाया-मण-कारण य खमंतु ते मज्झ सव्वे वि।।१४१७।। नाण-चारित्त-दंसण-पडिकूलं जं मए समायरियं। वाया-मण-काएण य मिच्छामिह दुक्कडं तेसिं।।१४१८।। अन्भिंतरओ र(रा)गाइ-बोस दविणाइयं च बाहरिओ । दुविहमचित्त-सचित्तं तिविहं तिविहेण वोसिरियं ।।१४१९।। चउविह-आहारस्स य जावजीवं च मज्झ णिव्वित्ती। जस्स कए आहारो तस्सेवाणिच्च-देहस्स।।१४२०।। नाण-चरित्त-सुदंसण-सहिओ एगो सयावि मे जीवो। सेसा संजोय-गुणा भवे भवे मज्झ वोसिरिया।।१४२१ ।। सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेइ जिणवरुद्दिढे। अरिहंत-सिद्ध-केवलि(२०५ब)उवइह्र सरइ जिणधम्मं ।।१४२२।। अवि यराग-द्दोस-कसाए दुजय-पंचेदियाइ-गुत्तीओ।
जेणेए अरि 'हणिया अरिहंतो मज्झ सो सरणं ।।१४२३ ।। १. दुक्खेधण. २. हणीया.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org