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दो सत्त मणुयलक्खेसु तहय निय-कम्म-नियलिओ जीवो। परिभमइ सरण-रहिओ जम्मण-मरणेहिं अक्कतो।।६३९ ।। इय एवमाइ दूसह चउरासी-जो[९१बाणि-लक्ख-दुक्खाई। विसहंतो भमइ जिओ धणियं संसार-कूवम्मि।६४०।। जो जत्थ जहा जीवो वच्चइ कम्मेण जेण कमलच्छि!। निय-कम्म-रज्जु-बद्धो आयण्णह तं विसेसेण।।६४१ ।। तं जहासढचित्तो दुट्ठमई विवरीयं कुणइ तह य गुरुवयणं । न सुणइ परलोय-हियं माइल्लो वच्चए नरए।।६४२।। वाया-मण-कारण य परिग्गरं कुणइ हणइ बहु-जीवे। वसणासत्तो लोही नीसीलो वच्चए तिरिए।।६४३ ।। दुट्ठक(९२अ)साओ कूरो माया-कवडेहिं जो परं मुसइ। पुरिसो वि होइ महिला दोहग्ग-कलंकिया दुहिया।।६४४ ।। धम्मपरा रिउ-भावा गुरु-भत्ता सील गुण-समाउत्ता। महिला वि होइ पुरिसो, सोहग्ग-सुरूय-गुण-कलिओ।।६४५।। हरि-करह-वसह-पसवाण कुणइ निलंछणं अहम्मो जो। मरिउं सो पइ-जम्मं नपुंसको होइ(९२ब) दुह-भाई।।६४६।। अक्खुद्दो दाण-रओ न कुणइ कोवं न भासए अलियं। तव-विहरिओ निबंधइ मणुयत्तं सव्व-जीवहिओ।।६४७।। दुक्कर-तव-नियम-सुसंजमेहिं दुद्धर-महावएहिं पि। उवसम-गुणेहि जुत्तो जीवो पावेइ देवत्तं ।।६४८।। खविय-कसाय-चउक्को परिसोसिय-पुण्ण-पाव-पन्भारो। उप्पन्न-विमल-नाणो(९३अ) सिद्धि-सुहं सासयं लहइ।।६४९ ।। इय संखेवेण 'मए तुह कहियं सुयणु! कम्म-फलमेयं ।
जह तत्थ तए पत्तं दुक्खमहं तं निसामेह।।६५० ।। १. धम्मा. २. कोयं.. ३. णिबंधइ. ४. वव. ५. मह. ६. कहिओ.
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