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भुवणभाणुकेवलिचरियं
तत्स गिहे वि जिणसिरी पालेइ जिणिदधम्ममइसुद्धं । वंदइ देवे गुरुणो पणमइ अ सुणेइ जिणधम्मं ॥८८६॥ उत्तमभीए भुंजंतीए तीए सुआ य संजाया । गिहिनायगत्तणं सा संपत्ता तत्तनिहुमणा ॥८८७॥ अह सत्थवाहधूआ धणसिरिनामा सुरंगणारूवा । परिणीआ 'जिणसिरिनामिआइ जिट्टेण पुत्तेण ॥८८८।। अह विन्नत्तो दोसग देणं मोहपत्थिवो ताय ! । मजिठुबंधुणा तोसिओ तुमं रागसीहेण ॥८८९।। लहुवंधुणो इआणिं अणुक्कमागयमिणं तु मह कजं । इअ पर्णामऊण पिअरं जिमसिरिपासम्मि एस गओ ॥८९०।। तस्सन्निहाणओ तीइ समुदेइ धणसिरिवहूविसए । दोसो महंतओ जलइ तओ सा तीइ दिट्ठाए ॥८९१॥ सा पंजलं न जंपइ न किं पि तब्भायणम्मि पाडेइ । आहणइ सिरम्मि बहुं 'दव्वीए 'निनिमित्तमिमा ।।८९२।। अक्कोसे देइ तहा दूसेइ अ माणुसाणि सव्वाणि । दावेइ नेव भिक्खायराण भिक्खं खणेणेसा ॥८९३।। “विअरेइ नेव अन्नं अप्पं पि वहूइ सा 'विअडचित्ता । अन्नो वि सो पयारो नत्थि करेइ न वहूइ इमा ॥८९॥ परमेसा भत्तीए नियपयपक्खालणं च कुणमाणिं । वहुमाहणिऊणं निब्भच्छइ पण्हिप्पहारेण ॥८९५॥ परिवेसणाइकज्जेसु अदूरेणं च चिट्ठमाणिं तं । सा धिक्करेइ कत्थ वि वहूइ भंजिस्सइ अ अग्मं ॥८९६॥ खणमवि चएइ न गिहं वंदइ देवे न सग्गुरू वावि । चिंतेइ. नेव एसा जिणधम्मं पुण मणेणावि ॥८९७॥ किंचि वि पिहाणपमुहं वहूइ भग्गं पुरा वि सरिऊणं उम्भावेइ पइजणं अभूअमवि सा य अवराहं ।।८९८॥ सुद्धसहावं पि वहुं अक्कोसंती मया वि अणिमित्तं । दोसदहणेण एसा पज्जलमाणा मणे ठाइ |८९९।। अह नायं भजाए ती सरूवं तहाविहं सब्वं । विमलेण सिद्विणा परिअणेण नयरेण सव्वेण ॥९००॥
१. जिनश्रीनामिकायाः ॥ २. प्राजलम्-सरलमित्यर्थः ॥ ३. दा भाषायाम् 'कडछी'॥ ४. निनिमितम् ॥ ५. वितरति ददातीत्यर्थः ॥ ६. विकृतचित्ता ॥ ७. "मा क्वचिद् अस्याः किमपि अग्रं भविष्यति" इति. भ. भ. पृ. ३१६॥ ८. प्रतिजनं ।
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