________________
भुवणभाणुकेवालिचरिये
इअ 'असमाहाणं नेव सावय! तए कयावि कायव्वं । "सा वि अ उवस्सयगया सज्झायं जा परिहरेइ ॥१२०४।। विगहाओ विविहाओ अवरावरसाविआजणेण समं । पारंभइ जा तपसिं पारो आगच्छए नेव ॥१२०५॥ जा समणी-सावय-माविआण दोसे अणंतरं 'चवइ । सिक्खेइ का वि समणी जह भद्दे ! गलइ तुह पाटो ॥१२०६॥ विगहा-परपरिवायाऽणत्थयदंडेण अत्थि किमिमेणं । "एहिअअवायकरणेण कम्मबंधणनिमित्तेण ॥१२०७।। "सज्झायममिअरूवं समग्गसंपत्तिकारणं कुणसु । अह मुहमोडणयं काउं पडिजंपइ जहिच्छं जा ॥१२०८।। हे अज्जे! 'विगहावरपरिवाया संजयाणमवि जाव ।। बटुंति "दुच्चया को अन्नो चिट्ठइ विणा तेहिं ? ॥१२०९।। अम्हे सुहेण भणिमो सब्वेसि जणाण कस्स वि जणस्स । वयणं न रक्खिमो न मुणिमु 'मायं काउमन्नु व्व ॥१२१०।। ज जारिस तु चिट्ठइ जणयस्स वि तारिसं फुडं चेव । तं भासामो जइ पडिभासइ 'रुसउ तुसउ व को 10 ॥१२११।। अह विनाया जा 'अणरिहा वराई वरोवएसाणं । जीए ''मुक्कलजीहाए समणीहि चइओ संगो ॥१२१२॥ निस्संकीभूआ जा गुरुवक्खाणे वि ताव उवविट्ठा । वत्थेणं मुहमच्छाइउमेगाए लगइ कन्ने ॥१२१३।। अन्नाए अन्नं किं पि परं पुण जंपए पराए जा । विगहाविहाणदक्खा वक्खाणरसं च भंजेइ ॥१२१४।। अडवीउम्मत्तमहामहिसी कलुसीकरेइ सयलं पि । 'पल्ललजलं व आलोडिऊण विगहाइ तह लोअं ॥१२१५।। अवरेसिं सुइभंग जणेइ जा इन्भपुत्तिअ त्ति परो । को वि नरो न य जंपइ कयावि जा सिक्खिआ गुरुणा ॥१२१६।। भासइ भयत्र ! नाहं केणावि समं च किं पि जपेमि । जइ पुच्छिअस्स दिजइ न उत्तरं हवइ ' तय थद्धा ॥१२१७॥
१. असमाधानम् ॥ २. साऽपि चोपाश्रयगता॥ ३. कथयति ॥ ४. ऐहिकापायकरणेन ५. स्वाध्यायममृतरूपम् ॥ ६. विकथाऽपरपरिवादौ ।। ७. दुस्त्यजौ ॥ ८. मायाम् ॥ ९. रुष्यतु तुभ्यतु वा ॥१०. अनहीं-अयोग्या । ११. मुक्तजिह्वायाः ।। १२. पल्वलजलम् ॥ १३. तदा स्तब्धा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org