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________________ विनय (?)कृत नेमिनाथ द्वात्रिंशिका Jain Education International परम त्रिन्नि उववास करि दिक्खाणं ठिउ; संवेग केवलसिरिं वरियउं. १४ सयल सुरवर सयल सुरवर मिलिय बहु भत्ति, आणंदिय उल्हसिय मणि समवसरण निम्मवई बहु परि; सिंहासणि सिंह जिम नेमिनाह उववसईं तिहि गिरि, जयजयकार समुहसियउ वदंसीय जिणधम्म; सो जन वाणिय अमिय जिम सामिय महिमारंभ. १५ धम्मदेसण सु मुणीय भवजं भयं, केवि चारित मह केवि सावयवयं; केवि सम्मत गिण्हवि उत्तमतमं, नेमि जिण पासि गुरूभावि वासिहि समं. १६ सहस अढार सहहत्थ मुणि दिक्खिया, सहस सेवापरा; च्यालीस साहु सयं नम्मिया; गुण सहस • लक्ख ईगु सहस छत्तीस सय लक्ख तिनि नमि सं सुर असुर नारी नरा, विन्नवई नाह तुह पाय उल्हसि भत्तिभर भरिय मण-मणोरह भणउं नाह चिर देव भवारिगण जेउ तुम्ह तेह हउं जित्रु छउ नाह तुह करिय सेवक दया पसुय जिम हाव रोमंचिया, बंधाउ सावया, सावीया. १७ संचिया. १८ जित्तउ, For Private & Personal Use Only भत्तउ; सामिउ, गोसामीउ. १९ कम्म अनंत पुग्गल फिरिय चउद रज गोचरे, जीव चउरासी लक्ख ठाणंतरे; तिरिय गई मणुय गई नरय गइ सुर गइ, तुम्ह दंसण विणा दुक्ख मई अणुहई. २० नेमि जिणवर नेमि जिणवर मोह- माहप्पउं, हीणउ दीणमणु चउ कसाय विषयह विगंजिय; मित्थत्त गहगण कलिउ कोडि रूव पाखंड रंजिय, ६६३ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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