________________
सं.१५३५मां लखायेला प्राचीन काव्यो
६५७
अहे तप जप संजम आदरी, कीधी निरमल काय, नेमि पहेली राइमइ, इम बेठी१४ शिवपुरि जाइ. २५ अहे राजमति(?) सिउं राइमइ, पुहूती सिद्धि-शलाय.
डूंगर स्वामी गाइतां, अफल्यां फलइ ताह.१५ २६ - इति श्री नेमिनाथ फाग समाप्त:. छ.
४. सोमसुंदरशिष्यकृत नवकार महामंत्र गीत [देशाईए ‘उदयवंत'ने कृतिना कर्ता गणेला परंतु 'उदयवंत' ए नवकार महामंत्रविशेषण होय अने कर्ता तपगच्छना सोमसुंदरसूरिना शिष्य होय एवो संभव छे. एटले एमनो समय सं.१५मी सदी उत्तरार्ध गणाय. कर्ता-कृति आ संदर्भने आधारे जैन गूर्जर कविओ भा.१ पृ.१५५ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ. ४७६ पर नोंधायेल छे. – संपा.]
अक्षर सपत जपत पदि पहिलइ, बीजइ बीजक पंच, त्रीजइ सात, सात चउथई, द्रव नव पंचमइ प्रपंच. १ सुगुणी गुणीइ नवकारो, चउदह पूरव सारो, नव पद संपद आठ आठसठि अक्षर अक्षर कारो. आंचली. छठई सिउं सातमइ आठमइ, पदि अक्षर आठाठ, नउमइ नव विध एवंकारइ, अठसठि अक्षर पाठ. २ सुगुणी. अठदल कमल हृदय जप जपीइ, खपीइ आठइ करम, धुरिलइ पदि विद्याधर विद्या, नाणी जाणइ मरम. ३ सुगुणी. समली-असमलि आवि हार, भरूअच्छि सहु कोइ जाणइ, नउकार लगइ नाग नागपति, नागलोकि सुख माइई. ४ सुगुणी. पलिंद पलिंदी नउकार गुणतां, कुणतां वनि मुनिसेव, राज भोगवी राजसिंघ नइं, रतनवती थ्यां देव. ५ सुगुणी. मारीते अशोकशेखरि, ए समरिउ मंत्र पवित्र, तं निसुणी रणि वीरसेन तीहं, शित्र फीठी थ्यउ मित्र. ६ सुगुणी. थावर जंगम विषम महा विष, गरड स गरुड समाणु. ७ सुगुणी० महेसरी-घरि परणी तुरणी, श्रावक कुलनी बाला; नउकार वडइ घडइ थिकु थ्यउ, सरप पुप्फमाला. ८ सुगुणी. सेठि तणा बेटानइं भेटिउ, ठगवा एक पाखंडी,
नउकारि करी सो सोनानु, पुरसउ भयउ त्रिदंडी. ९ सुगुणी. १४. क. राखे. १५. ग. पहेली कडी पछीनी वधारानी कडी अहीं पण छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org