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सं.१५३५मां लखायेलां प्राचीन काव्यो
६५५ ३. डुंगरकृत नेमिनाथ फाग (बारमास) [आ कर्ता-कृति आ संदर्भने आधारे ज जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति भा.१ पृ.१५४ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.१५२ पर नोंधायेल छे. कृति ‘प्राचीन फागु संग्रह' (संपा. भोगीलाल सांडेसरा, सोमाभाई पारेख)मा अज्ञातने नामे मुद्रित थयेल छे ने 'जैन मरु-गुर्जर कवियों और उनकी कृतियां' (संपा. अगरचंद नाहटा)मां एना आरंभ-अंत नोंधायेला छे. अहीं पाठशुद्धि तथा पाठांतरोमां एनो लाभ लीधो छे. देशाई, सांडेसरा तथा नाहटाना पाठने अनुक्रमे क,ख,ग तरीके ओळखाव्या छे. 'ख'मां कडी १०, २१ अने २६ नथी. - संपा.]
अहे तोरणि वालंभ आविउ, यादवकुल केरउ चंद, अहे पसुअ देखि रथ वालिउ, दिहि दिसि हूउ विछंद'. १ अहे निशि अंधारी एकली, मधुर म वासिसि मोर, विरह संतावइ पापिओ, वालंभ हिई कठोर. २ अहे धुरि आसाढह ऊनइउ, गोरीने गुणनेह, गाढइ गाजि म पापिउ, छानउ वरिसि-न मेह. ३ अहे श्रावण वरिसइ सरवडे, मेह न खंडइ धार, मनमथि मोरूं मन व्यापिउं, प्रीयडउ करइ न सार. ४ अहे भाद्रवडो भरि ऊलटइ, सरोवर लहरडे जाइ, कायासरोवर अम्ह तणउं, सामीय विण सीदाइ. ५ अहे राजहंस परबति चडी', किमई न आवइ हेठि, मानसरोवर परिहरी, छीलरि उपरि देठि. ६ अहे आसो आसा-बंधडी, हू मेल्ही ईण कंति, मधुकरि मालति परिहरी, पारिधि पूठि भमंति. ७ अहे जिम जिम सहीयर सासरइ जाती देखू माइ, तिम तिम मोरं मन आवटइं, किमइ न थाहरइ ठाइ. ८ अहे काती मासि मेलावडउ, नेमि न कीधउ आज, छपनकोडि जादवधणी, हुं मूकी कुण काजि. ९ अहे विलवंती मेल्ही गयउ, गरूया गणइ त[न ?]जोझ,
जीवदयालू जई किमइ माणस रूपिइ रोझ. १० १. ख. तिहि वसि हू उच्छंद. ग.मां आ पछी वधारानी पंक्तिओ : नयणा नेहु भरे गयउ सुनेमिकुमारु, रेवइया गिरिवर सरि चडी उ लीध संजम भारु. २. ख. रूअडु. ३. ख. लूघडी.
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